लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'  
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Joined 20 February 2019


Joined 20 February 2019

जो आगन को लड़ रहे, भाई से हर शाम
कमतर देखो लग रहा, उन्हें राम का काम

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कहते जो निरपेक्ष हो, राजनीति की धार
दसको से वो रख रहे, नित तुष्टी आधार।।

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जन्मे भारत भूमि में, हम से कई कपूत
अंग्रेजी बामन जि्हें, हिन्दी हुई अछूत।।
हिन्दी का दिन एक है, अंग्रेजी को वर्ष
कैसे फिर सम्मान हो, कैसे हो उत्कर्ष।।
कैसे फिर हो देश में, अपनेपन का बोध
उत्तर की हिंदी बता, दक्षिण करे विरोध
अंग्रेजी को पूज सब, देते यह आरोप
उत्तर वाले देश पर, हिन्दी देते थोप
हिन्दी वालों को स्वयं, हिन्दी लगती हेय
इस कारण ही आजकल, अंग्रेजी है ध्येय

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क्षणभंगुर है आजकल, शीशे सा संकल्प।
राम सरीखा कौन अब, सारे मन के अल्प।।

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गुण की चिंता है किसे, दिखता रहे गँवार
अब तो केवल रूप को, सब ही रहे सँवार
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जाना जिसने रूप से, गुण का गुण है खास
उस के जीवन से कभी, जाता नहीं उजास

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नैतिक शिक्षा से रहित, मत लो कोरा ज्ञान
दयाभावना मारती, जीवित रख अभिमान
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मत आने दो सोच में, कभी कहीं भी लोच
यह जीवन के पाँव को, पलपल देती मोच

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कभी हैती कभी ग़ाजा कभी सूडान जलता है
लगी हो आग कैसी भी यहाँ इन्सान जलता है

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गर्दभ का हर युग रहे, गर्दभ सा ही हाल
बनता नहीं तुरंग वह, भले लगा ले नाल
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भूले पुरखे थे कभी, चेतक से बेजोड़
करते तभी तुरंग से, आज गधे भी होड़

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पत्ता टूटा पेड़ से, उपवन हुआ उदास
लेकिन आज समाज में,ऐसा नहीं समास

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जो जीवन में रख सदा, शिक्षा का आधार
बन जाते हैं सत्य ही, सब को ही उजियार।
पुंज नवल जो ज्ञान के, सूरज से साकार
उस गुरु का हम करें, जीवनभर आभार।

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