विकास दौड़
गति अवरोधक
को वी द 1 9
24/03/2020-
आज के अख़बार के मुख्य पृष्ठ पर छपी दो खबरें
एक ऊपर तो दूसरी नीचे के भाग में
अख़बार को बीच से मोड़ने पर
दोनों खबरें हेडलाइन बनती हैं
एक से होता है सर फ़ख़्र से ऊँचा
तो दूसरी से होती है शर्मिंदगी
एक ख़बर है चन्द्रयान की
'भारत चांद छूने चला'
दूसरी ख़बर गिरिडीह की है
जहां डायन समझ पीटा गया
एक महिला को पेड़ से बांध कर
अख़बार की तरह हमारा हिंदुस्तान भी
मुड़ा हुआ है दो भागों में
एक आगे है
जिसे हम पढ़ते हैं, देखते हैं,
जिसके साथ चलते हैं
दूसरा पीछे है
जहां अंधेरा है,
जो हमारे साथ नहीं
जो काफी पीछे छूट गया है
जो रहता है हाशिये पर
और छपता है मुड़े हुए अखबार के
पीछे वाले भाग में-
मानवता हो शहर मे,
बेटियाँ घर से ना निकले डर मे,
कोई भुखा ना रहे किसी घर मे,
कल जन्मे शिशु ना बहे नदी-नहर मे,
अन्नदाता ना डुबे कर्ज की लहर मे,
दिल ना भिगे हो जातिवाद के जहर मे,
विकास मेरी नजर मे...✍🏻-
अच्छे दिन चाहते है
अच्छी रातें चाहते है
ये जो ला सके
हम ऐसी सरकार चाहते है..
शिक्षित आवाम चाहते है
समझदार हुक्मरान चाहते है
भ्रष्टाचार मिटा सके
हम ऐसा सुशासन चाहते है..
पक्की सड़कें चाहते है
बहती नहरें चाहते है
आवाम को दिखे
हम ऐसा विकास चाहते है..-
विश्वास और विकास की बीज,
जितनी जल्दी बोया जाए...
उतना ही सुंदर और बेहतर फलता है।— % &-
राजीनीति की खाट पर, बन्धा पड़ा विकास
बेरोजगारी खेल रही, स्मार्ट फ़ोन पर ताश-
विकास या विनाश
विकास की दौड़ या विनाश की गति,
क्या समझूं इसे उन्नति या अवनति ।
पैसों से तो अमीर और समृद्ध हो गए,
पर रिश्तों - नातों से गरीब हो गए।
वस्तु के बदले वस्तु, सेवा के बदले सेवा,
यह प्रणाली तो कब की खत्म हो गई है।
अब सबकी कीमत पैसों से ही तय होती है,
लोग अपनों से दूर और पैसों के करीब हो गए।
कभी पैसों की जेब खाली होती थी,
पर खुशियों की जेब भरी होती थी।
पहले पूरा समाज अपना परिवार था,
अब तो अपनी डफ़ली अपना राग है ।
पहले पूरे गांव के लोग अपने लगते थे,
अब तो पड़ोसी भी अनजाने लगते हैं।
लोगों के बीच भाईचारा और प्यार था,
अब तो बस नफरत और व्यापार है।।
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