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एकदम से दाम बढ़ गए बेनाम तेरी शायरी के
उसकी वाह-वाह लोहे पर सोने की परत हो जैसे-
शीर्षक - ॥ मजबूर देखा ॥
मैंने एक मजदूर देखा, लोहा देखा संदूर देखा ।
चप्पल नहीं है पैरों में कांटो पर मजदूर देखा।
बिन कपड़ों के गर्मी में जलता सा बदन देखा ।
चीखती हुई किलकारी व आंखों में आंसू देखा।
दो रोटियों के टुकड़ों पर पलता परिवार देखा ।
उठाता छोटा बच्चा बोझ व पैरों में खून देखा ।
आंखों में आंसू देखे व बदन आधा नंगा देखा ।
स्तनों से खिस्का वस्त्र व झोली में छेद देखा ।
उमर भर की थकान व झुर्रियों वाला शरीर देखा।
मजदूरों को क्रूरता से देखने वाला मालिक देखा।
रोटी के लिए तड़पता वो खुदा का बंदा देखा ।
गुनाहों को नजरअंदाज करने वाला खुदा देखा।-
Likhna humein aata kaha hai..
Itna fun abhi mujhmein nhi...
Hum to armano aur ehsaason ko,,
Thikane lagane me lage rehte hain..
😌-
पत्रकार- "पड़ोसी मुल्क हमारा दुश्मन है, फिर आप उस से लोहा क्यों खरीदते हैं?"
मंत्री- "हमें दुश्मन से लोहा लेना चाहिये।"-
नदी मर रही थी
किसान भी मर रहे थे
जिन्होंने खेतों में सोना उगाया था
उनके बच्चे अब लोहा उद्योग में
काम कर रहे थे-
तुम एक डायमंड रिंग प्रिये
मैं लोहे का छल्ला हूँ
तुम शो रूम में सजी हुई
मैं फुटपाथ पे बैठा निठल्ला हूँ-
शायद मेरी ख्वाहिशेंं लोहे की बनी थी,
देखो न...
आँसुओं में भींग-भींग के जंग लग गई है इसमें।-
खामोशी के रास्ते उसने भी देखें हैं,
तपती गर्मी में हाथ उसने भी सेके हैं,
लोहा पिघला और बना दिया खंजर,
आग के शोले अपने हाथों से फेकें है..-