हो सकता है कि
तुम बहुत बारीकी से झूठ बोलने में कामयाब हो जाओ
मगर सच छुपाते हुए पकड़े जाओ
ये भी हो सकता है कि
तुम किसी की बुराई ना करों,
मगर जब कोई और करे तो हां में हां मिलाते जाओ
ये भी हो सकता है कि
तुम मुझसे नफ़रत ना करो
मगर किसी और से भी प्यार निभाते जाओ
ये भी हो सकता है कि
तुम अपने भूत की गलतियां ना दोहराओ
मगर भविष्य में उनसे नाता निभाते जाओ।।-
स्वतंत्र मन से
स्वतंत्रता दिवस की बधाई भी नहीं दे पा रही हूं;
इतनी विकलांगता कभी महसूस नहीं की हूं;
गर्व की बात है कि
सालों पहले एकता में एक ललक उठी थी आजादी
जो ज्वाला बनके बरसी थी अंग्रेजों पर;
मगर जिम्मेदारी वहीं खत्म नहीं हो गयी?
उस ज्वाला को जलाए रखना था;
उस आग को बचाए रखना था;
वो ललक हमेशा रहनी चाहिए थी;
मगर इसकी जिम्मेदारी किसकी थी?
इसकी थी?
उसकी थी?
तुम्हारी थी?
मेरी थी?
हमसब की थी?
मगर ये सवाल करने वाली मैं कौन!
मैं भी तो नहीं निभा पायी
अपने हिस्से की जिम्मेदारी;
तो फिर जिम्मेदार कौन?
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पहाड़ कुछ बोल ना सके,
कठोर कहलाए;
नदी शोर मचाती रही,
चंचल कहलाई;
पहाड़ एक जगह रहे,
सुशील कहलाए;
नदी इधर उधर भटकती रही,
असभ्य कहलाई;
पहाड़ आकाश छूते रहे,
स्वावलंबी कहलाए;
नदी जमीं से जुड़ी रही,
अभिमानी कहलाई;
लेकिन पहाड़ और नदी
दोनों ने ही बांटा जमीं को।।
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इतने आंसू बहे,
फिर भी आँखें सूख नहीं पाई;
पता नहीं
दिमागी चीख गला कैसे सुखा देती है?-
कविता लिखना भूल गयी हूं,
बस अब अपनी चीखें लिखूंगी;
तुम बताना जमाने को पागल हूं मैं
अब मैं खुद को खुद पागल लिखूंगी।।-
पीड़ाएं जीवन का हिस्सा है
मिलती रहती है, इसका ज्ञान था
और अभी भी है...
और इसके लिए तैयार थी;
मगर ये पीड़ाएं तुमसे मिलेगी,
इसका ज्ञान नहीं था...
इसलिए हताश हूं,
निराश हूं,
और अब लाश हूं।।-