मासूमियत & परिपक्वता
{संपूर्ण कृति अनुशीर्षक में}-
✍️"लेखन प्रतियोगिताएं सुखन-वरों को बहुत पसंद आती हैं।"✍️
(The writing competitions are very much liked by the poets.)
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ख्वाहिश बड़ी थी निकलने की, मुझे रास्ते काफी साफ दिख रहे थे।
कतारें जो लगी थीं लेखकों की, वाकई वे बेहतर साफ लिख रहे थे।
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शिरकत की तो दिखे कहीं शेरोशायरी तो कहीं फरमाइश-ए-नज़्म।
सुख़न-वर सभी फुर्सत से दीदार कर रहे थे मशरूफियत-ए-बज़्म।-
हर शख्स अपनी कहानी से
कोरे कागज को प्रज्वलित करता है
भर के रंग शब्दों के गाथा सौन्दर्य की गाता है
शैल-
लेखकांचे मन वेडा असतो,
कधी कुठे काय सुचेल सांगता
येत नाही. आणि सुचलं की
लिहिल्या शिवाय चैन ही पडत
नाही.लिहीलेले सगळे कुठे तरी
संबंधित जरूर असते पण ते
दुसरा कोणी सांगू ही शकत नाही.-
भरी महफिल में तुझे अपना कहूँ ये हक तू रहने दे ,
तू मेरा है सिर्फ मेरा इस भ्रम मैं मुझे रहने दे !-
मूक-वेदना की मोती हो तुम
अतंरात्मा की ज्योति हो तुम
तेरे बिन ये जिंदगी अधूरी है
हे प्रिय लेखनी जीवन-संगिनी हो तुम-
दर्द मेरा आग सा और मैं बर्फ सी कठोर इस दर्द की आग की तपन में मेरा मन पसीज जाता है...
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