अंजली चौहान   (अंजली चौहान)
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जस्बातों को शब्दों में लिखने वाली लेखिका📝📝/ # शायरा 🙈❤
Joined 14 July 2018


जस्बातों को शब्दों में लिखने वाली लेखिका📝📝/ # शायरा 🙈❤
Joined 14 July 2018
24 JUN 2022 AT 22:14

जब भी मैं उसकी नम ,शरबती, चमकदार आंखों को देखती हूँ, तो जैसे मेरे भीतर की कठोर स्त्री धीरे-धीरे पिघलने लगती है...
उसकी आंखों में उमड़े सभी सवाल जैसे मेरे भीतर अपने जवाब ढूढ़ते हैं....

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18 APR 2022 AT 22:57

पूर्णिमा के चांंद से तुम हर रोज़ मेरी रातों को रोशन करने वालें ,यूं जो अब मुझसे अपना दामन बचा कर चलतें हो मेरी रातें अब अमावस सी काली हो गई है...

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18 APR 2022 AT 21:28

इंसान सुकून की तलाश में बहुत दूर तक भटकता है,और आखिर में थक कर जब वो नउम्मीदी से भर जाता है ,तब वो इस बात पर भी सब्र कर लेता है कि उसे अपनी पसंद कुछ भी न मिला...

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14 APR 2022 AT 21:57

इंसान के भीतर सारा जग जीतने की होती है ताकत, जिस ताकत को कम करने के लिए ईश्वर उत्पन्न करता है मानव के भीतर "आत्मग्लानि" जो उसे एहसास कराती है उसकी कमज़ोरी का....आत्मग्लानि से भरा इंसान कभी फिर कर नहीं पाता कुछ बेहतर....

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14 APR 2022 AT 21:46

जब स्त्री रोटियां बनाती है तो जैसे वो एक क्रांति लगती है अपने नरम हाथों से गोल -गोल रोटियां बनाती स्त्री ऐसे ही बना देती है पूरा परिवार संसार, तेज़ आंच पर जब पकाती है स्त्री रोटी तो उस आंच में जलती है उसकी अनेक इच्छाएं जो बन कर वेदना फूल जाती है उस रोटी की तरह जिस फूली रोटी पर एक के बाद एक रोटियां रख स्त्री उसे दबा देती है...और जब वो आखिर में बची उस ठंडी रोटी को अपने हिस्से में रखती है तो वो उस आखिरी रोटी के साथ सब कुछ खुद में समा लेती है और फिर नहीं होती कोई क्रांति....

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होठों पर मुस्कान, दिलों में खंजर लिए मिलते है लोग,
ये वो ज़माना है जहां ज़हन में बदले का मंजर लिए घूमते है लोग ....

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25 MAR 2022 AT 23:08

स्त्री का सबसे बड़ा दुश्मन उसका जिस्म है जिसमें उलझकर पुरुष कभी उसके चित में झांक ही नहीं पता वो बदन की उलझन से निकल कभी उसके मन की गांठों को खोल ही नहीं पाता ....

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20 MAR 2022 AT 15:32

तुम यारों संग शहर भर घूम डीजे पर थिरकते हुए जाम से जाम टकरा कर त्यौहार मानने वालें प्रिये,
हम त्यौहारों में घर रह कर परिवार की पंसद का व्यंजन बानने वालें प्रिये,
अपना मेल हो कैसे सभंव प्रिय....

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18 MAR 2022 AT 23:24

बिछड़ना और अंत हो जाना कितना खूबसूरत होता है ये पता चलता है पतझड़ में गिरे उन पत्तों को देख ,जो अपने अंत से कर जाते है 'नया सृजन'

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18 MAR 2022 AT 22:43

ऐ मेरे चांंद आ बैठ मेरे करीब,तारों की भीड़ से निकल धरा पर एकांत में मेरे समीप की हम तुझे रंग दे अपने रंग में

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