श्वेता   (@ श्वेता स्वामित्)
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20 MAY 2021 AT 5:44

विवशता का सिद्धांत!
[पूरी रचना अनुशीर्षक में पढ़ें]
© श्वेता द्विवेदी

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17 MAY 2021 AT 13:19

ईश! मैं सिंधुजा तेरे प्रांगण की!
[पूरी रचना अनुशीर्षक में पढ़ें]

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1 DEC 2020 AT 9:27

आज गोभी के सुंदर फूलों के संग ,
मैंने बिताए हैं चंद लम्हे..,
कुछ लपेटे हुए जख्म और
मुस्कुराता हुआ बाहरी सौंदर्य!
काटते हुई कांप रहे थे हाथ..,
नहीं छीनना चाहती
थी मैं उसका सौंदर्य!
मुझे लगा जैसे किसी ने
छू लिया हो मेरा अन्तर्मन..,
मैंने छीन लिया था ..!
उस नन्हे से जीव का आश्रय!
ये उस नन्हे जीव
के प्रति प्रथम सहानभूति थी .!!

("Shweta Dwivedi")



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24 OCT 2020 AT 5:54

"चंदन "सी ,
प्रतिमा लिए,
बिखेरती हुई
अद्भुत सौंदर्य..!
प्रेममयी
एक आस्था.. ,
और भावनाओं
की पुजारी..
दरवाजे पर
नीम सी शीतलता
देने वाली मां
की प्राकृतिक सौंदर्य..!
"लाडली".... ,
पापा की प्यारी!

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16 JAN 2022 AT 12:51

तराई प्रांत की स्त्रियां !

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16 JAN 2022 AT 6:26

तुम आओगे ना! •••
[पूरी रचना अनुशीर्षक में पढ़ें]

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26 OCT 2021 AT 6:00

सृष्टि के
सृजन के पूर्व आगमन हुआ
पुष्पों का
कमलनयन की नाभि से,

प्रकृति से पुष्प नहीं , पुष्प से प्रकृति है !

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25 OCT 2021 AT 13:19

जब रोती है कोई स्त्री एकांत में
"एकांत" एकांत नहीं रह पाता
उसके अश्रु के बीज से अंकुरित होते हैं
सहनशीलता के कोंपल

पहुंचकर ह्रदय के उद्गम द्वार तक
सरलता से प्रवेश कर जाते है रूह में

कोंपल से किसलय में परिवर्तित होते ही
उसका मौन ,उद्वेग से भर उठता है
वो खड़ी होती है संकल्प लेती है
दुर्गा के सामने ,सावित्री बनने का ,
लांछन झेलने का ,पीड़ाएं सहने का

और अंत में
सीता बनकर समर्पित हो जाती है धरा के कोख में!

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24 OCT 2021 AT 6:17

तेरा दिल क्यों अब भी सूना है
गम पानी एक एक बुलबुला है !

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23 OCT 2021 AT 14:32

खत्म हो
जाते हैं कुछ रिश्ते
बनने से पूर्व ही
किसी अनहोनी के खौफ से
और प्रेम
आश्रय हीन हो जाता है
दूब पर सिमटे की बूंद की तरह !
यहां समाप्त नहीं होता किस्सा
दूब और उसने नन्हे बूंद का
ग्रीष्म बीतेगा ,
वर्षा ऋतु आएगी
और फिर सहेज
लेगा दूब उस नन्हें बूंद को
एक खौफ के साथ
की हवा का एक झोंका अलग कर देगा उन्हें

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