क्या दूं तुम्हें ..!?
[संपूर्ण कृति अनुशीर्षक में पढ़ें]-
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भाषा के आंचल प... read more
कल मेरा एक
जीवन पूरा होगा..जिसे
पूरे दिल से जी हूं!
बड़ा खुबसूरत रहा मेरा
वास्तविक जीवन... कल्पनाओं
के जीवन से कहीं अधिक सुंदर!
आज ..एक बार उलटी
जब अपने जिंदगी के पन्ने ...
बड़ी सुंदर लगी कहानी.. कितनी
मासूम थी मैं..
समझदारओं की दुनिया में..!
—@shweta Dwivedi
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आज गोभी के सुंदर फूलों के संग ,
मैंने बिताए हैं चंद लम्हे..,
कुछ लपेटे हुए जख्म और
मुस्कुराता हुआ बाहरी सौंदर्य!
काटते हुई कांप रहे थे हाथ..,
नहीं छीनना चाहती
थी मैं उसका सौंदर्य!
मुझे लगा जैसे किसी ने
छू लिया हो मेरा अन्तर्मन..,
मैंने छीन लिया था ..!
उस नन्हे से जीव का आश्रय!
ये उस नन्हे जीव
के प्रति प्रथम सहानभूति थी .!!
("Shweta Dwivedi")
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&"चांद-चांदनी और निशा"!&
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मुझे पसंद है चांदनी,
पर चांद के बिना
उसका अस्तित्व ही क्या..!?
उससे भी प्यारी
लगती है निशा...,
जिसके आते ही
चमक उठता है चांद...
छा जाता है आसमान में
बिखरने को अपना सौंदर्य!
हां ..,,
निशा के बिना चांद का
भला क्या अस्तित्व...?
(शेष अनुशीर्षक में )
"श्वेता दिवेदी"
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"चंदन "सी ,
प्रतिमा लिए,
बिखेरती हुई
अद्भुत सौंदर्य..!
प्रेममयी
एक आस्था.. ,
और भावनाओं
की पुजारी..
दरवाजे पर
नीम सी शीतलता
देने वाली मां
की प्राकृतिक सौंदर्य..!
"लाडली".... ,
पापा की प्यारी!-
सृष्टि के
सृजन के पूर्व आगमन हुआ
पुष्पों का
कमलनयन की नाभि से,
प्रकृति से पुष्प नहीं , पुष्प से प्रकृति है !-