जब अपने ही हाथों से रेत खुद फिसलने लगे मोतियों की माला से हर मोती खुद बिखरने लगे जब रोशनी मे अचानक ही अंधेरा छाने लगे। तब सोचना पड़ा!!!! खुद के बारे में अपनो के बारे में रिश्तों के बारे में
हम रेती के फूल, कहो, कैसे जीते हैं ? जड़ में है जो धूल आग है, चिनगारी है। सूख रहा है मूल, ताप रवि का भारी है। सिकताओं का देश, चमकता जो, मृगजल है। नहीं मृत्ति का लेश, कहो कैसे जीते हैं ?