समझो गे तुम भी, सोचा दिले नादान ने।
रंग रूप, अदाओ नाज़, दिल को भा गया,
यूँही उतार दी कश्ती उल्फ़ते, तूफान में।
एक शख्स के सबब , छोड़ दिया सबको,
ख़ौफ़े हद तक तन्हा है, अब बयाबान में।
मुसल्सल दुहाई, ओर कुछ असर भी नही,
मुरीद है हम ही फ़क़त, रहते हो गुमान में।
बर्दाश्त-ए-हुनर हासिल है,ख़ामोश है,'राज',
खैर,जानते है सभी कदर तुम्हारी जहान में।
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