रिश्तों में कभी जंग नहीं लगती
लेकिन जंग न लग जाये के डर से
बारिश में भीगना ही नहीं
वाली सोच से
रिश्ते धूल हो जाते है
दूर तक फैले रेगिस्तान की तरह
जहाँ फिर कुछ नहीं निपजता
फिर कितनी भी बारिश क्यूँ न हो
और
रिश्तों में पसरने लगती है
ख़ामोशी की नागफ़नी
जो बींध देती है
रिश्तों के होने के मानी-
हम तेरी बेरुखी मे भी मोहब्बत ढूंढ रहे थे...
जैसे रेगिस्तान मे किसी प्यासे को,
पानी की तलाश हो...-
मैं प्यासी रेत रेगिस्तान की,
तू समंदर में उठी लहर..
मैं गांव एक बियाबान सा,
तू जीता - जागता शहर..
मैं सुनसान रात बरसात की,
तू सर्दी में शिखर दोपहर..
मैं कोई तुकबंदी "वत्स" की,
तू 'ग़ालिब' की गजल-बहर...
©dr Vats-
मुझे रेत से क्या लेना देना ,
जहाँ तु नहीं, वो हर जग़ह रेगिस्तान हैं !-
हर एक लम्हा तरसाता हूं तेरे बिन ,
जैसे कोई रेगिस्तान हो बरसात बिन !-
रेगिस्तान
कैसे नाम गिनाए तुमको
यहाँ हर दिल में रेगिस्तान है
लबों पे झूठी हँसी है सबके
छुपा वो अग्नि का तूफ़ान है
वक़्त है कम पर सपनें ज्यादा
मिट्टी में धुंधला गया मक़ाम है
कैसे भुझेगी प्यास किसी की
ये खारे जल से भरा जहांन है-
समझो गे तुम भी, सोचा दिले नादान ने।
रंग रूप, अदाओ नाज़, दिल को भा गया,
यूँही उतार दी कश्ती उल्फ़ते, तूफान में।
एक शख्स के सबब , छोड़ दिया सबको,
ख़ौफ़े हद तक तन्हा है, अब बयाबान में।
मुसल्सल दुहाई, ओर कुछ असर भी नही,
मुरीद है हम ही फ़क़त, रहते हो गुमान में।
बर्दाश्त-ए-हुनर हासिल है,ख़ामोश है,'राज',
खैर,जानते है सभी कदर तुम्हारी जहान में।-
रेत फिसल गई हाथों से मेरे, पर अपनी रज के निशान छोड़ गई...
मेरी दुनिया से रुसवा होके चली गई बस यादों भरी कसक छोड़ गई...
जिल्लत भरे ज़माने में हम अपनें,अरमानों का दम घोटते रहे साहेब...
और तुम लू जैसा इश्क़ करके, जिया जलाने वाली आंधियां छोड़ गई...।
#यादों_की_कसक-