किसी को उजाड़ कर,
बसे तो क्या बसे...
किसी को रुला कर,
हंसे तो क्या हंसे...!-
इश्क़ की अपनी अलग की बचकानी जिद है,
चुप कराने के लिए भी वही चाहिए
जो रुलाकर गया है।।-
मुझे रुला कर तुझे जो चैन आता है,
खुदा करे तेरा ये चैन यूँ ही बरक़रार रहे !!-
किसी महफ़िल में रौशन चिराग है तू
किसी झोपडी़ का टिमटिमाता मैं दिया-
किसी को उजाड़ कर बसे तो बसे क्या!
किसी को रुला कर हंसे तो हंसे क्या!!-
Kisika roti chinke bhook mitaya to bhooka rehna behtar he..
Kisika khushi chinke khus huye to gham me rona behtar he..-
उसकी नम आँखों ने मुझसे सवाल किया है
रुलाकर तूने सुरमई आंखों को क्यों रुसवा किया है-
दोस्त दर्द कोई भी हो उसे हम पी जाएंगे !!
मगर ,
दोस्त हम किसी को रुलाकर उसकी आत्मा को तड़पाकर हंस जाए!!
इतनी हम्मे दम नहीं !!
क्योंकि,
हम प्यार करते अपने दोस्तो से!!
हमें कोई जुदा कर दे !!
इतना ,
किसी के माई के लाल में दम नहीं!!
(संतोष अनुरागी)-
दिल ने प्यार दिया
प्यार ने दर्द दिया
फिर दर्द ने आंखो को रुलाया
रूलाके भी दर्द को चैन नहीं आया
फिर दिल ने दर्द को पहचान ने में इनकार किया......!-
उजाड़कर सपने मेरे खुश हो तुम, क्या खुश हो ?
रुलाकर मुझे हस रहे हो तुम, वाकई हस रहे हो ?
सबसे जिद्दी लड़का था मैं, तू जानता था न ?
लोग अब तड़पता देखते है मुझे।
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