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एहसान ही एहसान वो करता रहा मुझपर.
जख्मों पे मेरे नमक का मरहम लगाता था.
उसकी तरफडारी में खड़े रहते सर के बल.
हमको मिटाने में वो पूरा दम लगाता था.
पारस थे हम उसकी नजर में मामूली पत्थर.
जब भी लगाता थोड़ी कीमत लगाता था.
मैं वफादार रिश्तों में सदा बना रहा.
वो जब दिखाता मुझसे वफा कम दिखाता था.
जब भी कभी बिठाता सिखाने ko शतरंज.
बस अपनी चाल छोड़ बाकी सब सिखाता था.
कुछ इस तरह भी करता था मुझपर इनायतें.
मयखाने में बेहोश होने तक पिलाता था.
ढोया न जा सका वो मुझसे कई उम्र तक.
जब तक रहा हमदम मुझे हरदम रुलाता था.-
समझते नहीं वक़्त पर वक़्त को जो.
वो तिल तिल मरेंगे तड़पकर मरेंगे.
लिखेगा ना कोई कहानी तुम्हारी.
वो सबकुछ तुम्हारा हड़पकर मरेंगे.
हक़ीकट के कितने फसाने बनाओ.
मोहब्बत में आशिक लिपटकर मरेंगे.
दरारे दीवारों की भरते नहीं जो.
वो पत्थर पे सर को पटककर मरेंगे.
हुए हुस्न पर जो फिदा अपने अपने.
वो शीशो के घर में चटककर मरेंगे.-
आंकड़े सरकारी हैं आंकड़ों को रहने दे.
काटें बार बार उसको बस जड़ों को रहने दे.
आप माई बाप हैं हम आपके रहमो करम पर.
जो कहें सच को सदा अब उन धड़ों को कहने दें.-