शाश्वत द्विवेदी "बाली"   (शाश्वत द्विवेदी "बाली")
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Joined 9 January 2020


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Joined 9 January 2020

हालात क्या बिगड़ गए ?

उनके अंदाज ही बदल गए।

साथ रहकर मुश्किलों से लड़ना था बाली!

वो तो हमसे ही लड़ने लग गए।


अब तो रोना भी छोड़ दिया है ये सोचकर!

कहीं खुदा उनसे मेरे आंसुओं का हिसाब न कर बैठे।

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क्या गलत था, क्या सही!

अब सफाई नही दे पाऊंगा।

कितना प्यार था तुमसे!

साबित भी नही कर पाऊंगा।

और मान ली मैंने अपनी गलती मगर!

रिश्ते बचाने के लिए अब और नहीं झुक पाऊंगा।

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तुम एक बार नजरंदाज करके देखो तो!

मैं तुम्हे पहचानने से भी इंकार कर दूंगा।

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मोहब्बत में सवाल जवाब की इजाजत नहीं होती है।

किसी के दिल में आने की कोई आहट नही होती है।

सपने देखने से कोई सरहद या दीवार नही रोक सकती है।

दिल टूटने की कोई आवाज नहीं होती है।

किस्मत की तो फितरत ही है, धोखा जरूर देती है।

बदकिस्मती वक्त बे–वक्त आ धमकती है।

अरे थोड़ी तो सज्जनता दिखा ए जिंदगी,

हम इंसानों की भी कोई औकात होती है।


मिली जो इजाजत तुम्हारी, हम दोबारा लौट कर आयेंगे।

सभी अधूरी ख्वाहिशों को नई शिद्दत से निभाएंगे।

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अपनी खुशियों को भाइयों पर वार देती है,

बहने ता–उम्र प्रेम, स्नेह और दुलार देती है।

अपने सपनों को भाई की आंखों से ही निहारती है,

खुद डांट खा के भी भाई को दुलार देती है।

लड़ लेते है भाई भी वजह–बेवजह अपनी बहनों से,

बहन की गालियां भी तो भाई का सुकून होती है।


रक्षा का ये बंधन है, है इसमें भाई बहन का दुलार,

तुम्हारी राखी का बहन मुझे भी रहता है इंतजार।

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बेफिक्र रहो! अब आजाद हो तुम।

तुम्हे दूर रहने की आजादी है।

तुम्हे भूल जाने की आजादी है।

तुम्हे नफरत करने की आजादी है।

मुझसे बेवफाई करने की आजादी है।

मेरा दिल तोड़ने की आजादी है।

मुझे छोड़ने की आजादी है।

जाओ खुश रहो तुम, जहां भी रहो।

तुम्हे मेरी तरफ से अब खुली आजादी है।

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मैं थोड़ा समय और मांगना चाहता हूं,

मैं तुम्हारी हर चीज लौटाना चाहता हूं।

तुम्हारे लिए लिखा हर शब्द लौटाना चाहता हूं,

साथ बिताए उन हसीं लम्हों को लौटाना चाहता हूं।

तुम्हारे किए वादे तुम्हे लौटाना चाहता हूं,

साथ में देखे उन ख्वाबों को लौटाना चाहता हूं।

मैं खुदको भी तुम्हे लौटाना चाहता हूं,

जो कयामत तक तुम्हारा रहेगा।

मगर शिया, इन सब का अब तुम क्या करोगे ?

आगे बढ़ चुके हो तुम अब मुझे कहां याद करोगे।

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जिंदगी में एक गुनाह करना है,

मुझे तुम्हे कैद करना है।

मत कहना ये कैसी बेतुकी चाहत है।

तुम्हे पलकों पे बिठा कर, आंखों में बसा कर,

ख्वाबों में सजा कर, ओठों पर लफ्ज़ बना कर,

बाहों में भर कर और दिल में बसा कर रखना है।

हर लम्हा मुझे तुम्हारे साथ बिताना है।

बस, तुम्हारा बनकर ही मुझे रहना है।

शिया, इस गुनाह की इजाजत मैं तुमसे चाहता हूं।

इस गुनाह की हर सजा कुबूल करना चाहता हूं।

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उसकी आंखों में नमी दिखती है,

उसकी आंखों में मेरी कमी दिखती है।

बहुत सताता है मुझे ये अकेलेपन का एहसास,

उसकी आंखों में देखता हूं, दूर होकर भी खुद को पास।

उसकी आंखों में मोहब्बत की सच्चाई दिखती है,

शिया जैसे बाली की परछाई लगती है।

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एक राह बड़ी अनजानी है,

उसपर चलते जाना है।

मंजिल का तो पता नही,

कोई अपना मिलने वाला है।

मतलब भरी दुनिया में,

शिया बेमतलब का साथी है।

हो गया जुदा उसके ख्वाब से तो कोई बात नही,

मेरी सपनो की मुलाकात अभी उससे बाकी है।

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