मखमली धरा
नन्हीं सी कोमल कदम
हाथ पांव माटी से सने
मुस्कुराती मासूम सी नयन
सागर सी विशाल धारणाएं
मन का पुष्प खिलता सा अंतर्मन
निर्मल मन उड़ने को फ़िरे यहाँ वहाँ
जैसे इन नन्हीं सी कदमों ने
हँसते हँसते माप लिया हो सारा गगन-
वस्ल में रो गई आँखें, हिज़्र में मुस्कुराए लब।
हमें जो भी सिखाया इश्क़ ने सब उल्टा सिखाया ॥-
मैं रूद्र हूँ....
मैं रौद्र हूँ मैं रूद्र हूँ, मैं शब्दों का समुद्र हूँ,
मैं आदि हूँ मैं अंत भी, मैं राजा हूँ और रंक भी...
मैं हूँ सृजन और काल भी, मैं ही हूँ महाकाल भी..
मैं हूँ नदी और नीर भी, मैं हूँ धनुष और तीर भी..
मैं हूँ धरा गगन भी मैं, अविचल सा शांत मन भी मैं...
मुंडको की माल भी, खप्पर में कपाल भी...
मुनि भी हूँ और ज्ञान भी, मैं ही तपस्या ध्यान भी.....
मैं ही नटराज हूँ, मैं ही कल और आज हूँ..
मैं गीता का हूँ ज्ञान भी, मैं मंदिर भी शमशान भी..
मैं कृष्ण का सुदर्शन भी, मैं जीवन का दर्शन भी...
मैं सती का सतित्व भी, मैं काली का व्यक्तित्व भी,
मैं नाश हूँ, विनाश हूँ और मैं ही सर्वनाश हूँ....
मैं शिव भी हूँ, शिवाय भी, ब्रह्माण्ड सा महाकाय भी..
मैं काव्य हूँ, मैं वेद हूँ, मैं सृष्टी में अभेद हूँ..
मैं रूद्र हूँ, मैं रौद्र हूँ, मैं शब्दों का समुद्र हूँ
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वीणा की झंकार से माँ अन्तर्मन में स्वर भर दो
सारे दुर्गुण को नष्ट करो माँ, मेरा चित निर्मल कर दो
मैं हूँ अवगुण की खान, भवानी मेरे सारे कष्ट हरो
वेदों की शुभ ज्योति ज्ञान से मुझमें ज्ञान शक्ति भर दो।
Adarsh Srivastava-
आसाँ नहीं है, सब समेट कर समुद्र हो जाना
बहुत ही जटिल है, महादेव का रुद्र हो जाना-
मैं ओंकार हूँ
भय को भी भयभीत करे
भूत पिशाच के निकट रहे
अन्यायी के लिए प्रतिकार हूँ
मैं ओंकार हूँ
मैं ही माया,मैं ही प्रपंच
मैं ही जीव,मैं ही जगत
ब्रम्ह का साक्षात्कार हूँ
मैं ओंकार हूँ
कण से भी सूक्ष्म
हिमालय से भी विशाल
मैं निरपेक्ष हूँ मैं निर्विकार हूँ
मैं ओंकार हूँ
कमल से भी कोमल
चट्टान से भी कठोर
सृष्टि के लिए महाकाल हूँ
मैं ओंकार हूँ
मैं रुद्र हूँ ,मैं ही विभोर
श्मशान का मैं अघोर
दुष्टों के लिए हाहाकार हूँ
मैं ओंकार हूँ
पाताल से ब्रम्हाण्ड तक
आदि हूँ ,अनन्त भी
चराचर सृष्टि का रचनाकार हूँ
मैं ओंकार हूँ-
"""रौद्र_रुद्र_आह्वान"""
हे विधियंकर, देव शुभंकर, हे क्रोधंकर जाग उठो
हे प्रलयंकर, हर-हर-शंकर, रुद्र भयंकर जाग उठो
हे कैलाशी, घट-घट वासी, पाप विनाशी जाग उठो
अघ परिहासी, कलियुग दासी, मृत्यु प्यासी, जाग उठो।।
जाग उठो हे देव शुभंकर शोक भयंकर छाया है
पापी कलियुग सर पर गठरी बाँध पाप की आया है
मरण दुदुम्भी बजने को है, हे शिव-शंकर जाग उठो
हे प्रलयंकर, हर-हर शंकर, रुद्र भयंकर जाग उठो।।
तांडव प्रचंड हे रुद्र चण्ड अब मृत्युदण्ड का ध्यान धरो
मृत्यु नृत्य का रौद्र कृत्य कर वसुधा का कल्याण करो
लिंग-लिंग-शिवलिंग में जागो, कंकर-कंकर जाग उठो
हे प्रलयंकर, हर-हर-शंकर, रुद्र भयंकर जाग उठो।।-