पुरुषोत्तम कोशलेय भी मैं
परम भक्त आंजनेय भी मैं..
विवश नार सीता भी मैं
पुत्र वियोगी पिता भी मैं ....
भ्राता निष्ठ लक्ष्मण भी मैं
घर भेदी विभीषण भी मैं ....
अवध के मन की शंका भी मैं
लपटों में जलती लंका भी मैं
अहल्या सी अटल शिला भी मैं
हर क्षण घटित रामलीला भी मैं ..-
कहाँ जटायु रावण से अब लड़ता है
नहीं लखन अब राम के पीछे चलता है।
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दुनिया की सबसे छोटी रामायण
वाल्मीकि के संस्कृत रामायण और तुलसीदास के अवधी रामचरितमानस के बाद श्री तुलसी प्रसाद ने भोजपुरी में रामकथा लिखने की सोची। लिख लेने के पश्चात प्रूफ रीडिंग के लिए एक मित्र को भेजी। बदकिस्मती से वे लघुकथा विधा के प्रकांड थे और एक पत्रिका के सम्पादक भी। इतनी लंबी रचना देखते ही भड़क गए।
तुलसी प्रसाद ने हार नहीं मानी। कुछ पृष्ठ हटा दिए। लघुकथाकार को तसल्ली न हुई। उन्होंने कहा,'सात कांड में राम कथा लिखने की क्या आवश्यकता? बचपन की घटनाओं का वर्णन करने की भी कोई आवश्यकता नहीं। मुख्य बात है कि राम ने जन्म लिया'
राम के वन जाने पर स्पष्ट है कि जो भाई पीछे रह गए वे राज काज संभालेंगे ही इसलिए भरत और शत्रुघ्न का प्रसंग रखने की आवश्यकता नहीं। मुख्य बात है कि राम वन गए।
फिर वन में कई राक्षसों का वध करते और वानर भालू को मित्र बनाते लंका पहुंचे। क्यों पहुंचे? स्पष्ट है रावण को मारने।
इस तरह काट छांट कर अंततः तुलसी प्रसाद की रामायण को उन्होंने लघुकथा की शक्ल देने में कामयाबी हासिल की।
तुलसी प्रसाद की पुस्तक छपने की अभिलाषा तो पूरी नहीं हुई परंतु उनकी लघुकथा विश्व की सबसे छोटी रामायण के रूप में अवश्य प्रतिष्ठित हो गई जो इस प्रकार है:
राम जनमलें, वने गइलें
रवणा के मरलें, घरे अइलें
अर्थात
राम ने जन्म लिया, वन गए
रावण को मारे, घर आए-
आइए, आज पढ़ते हैं वनगमन के समय का प्रसंग
वाल्मिकी रामायण में लक्ष्मण ने राम को दशरथ वध पर विचार करने के लिए कहा था किंतु राम ने उस समय जिस आदर्श को प्रस्तुत किया उसी से राम का चरित्र अवतारवाद की ओर अग्रसर होता है।-