देखो आया है सावन मास सखी।
मेरे कान्हा के आने की आस सखी।।
कदंब की डाली पर झूला डालो,
फूलों लताओं से इसको संवारो,
अरे आया है दिन बड़ा खास सखी।
मेहंदी लगाओ री पायल पहनाओ,
सुंदर श्रृंगार से मुझको सजाओ,
होगा आज फिर महारास सखी।
फिर से कान्हा मुझको झुलाए,
बंसी की धुन पर सबको नचाए,
अरे नाचेंगे मिल सब साथ सखी।
रह रह कर मेघ बूंदा बरसें,
मोर पपीहा दादुर सब हरसें,
कब बुझेगी दर्शन की प्यास सखी।
चला गया था छोड़कर वह निर्मोही,
फिर से आकर कोई खबर भी न ली,
पाती से भी कोई ना बात सखी।
उमड़ घुमड़ कर आई है बदरिया,
श्याम की इसने भी लाई ना खबरिया,
जी हो रहा मेरा बेहाल सखी।
इस सावन तो आएगा वो,
मृदु मुस्कान दिखाएगा वो।
बंसी की धुन पे नचाएगा वो,
"श्रेया" हो जाएगी निहाल सखी।।
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