मैं किसी को बेवफाई का इल्ज़ाम कैसे दूँ?
किसी ने इबादत की तरह चाहा नहीं मुझे।
पत्थर समझ के दिल को ठोकर मार दी,
एक बार भी किसी ने परखना चाहा नहीं मुझे।-
उसने पूछा जनाब रहते कहां हो
मैंने कहा तुम्हारे दिल की सीढ़ियों पर
उसने कहा जनाब करते क्या हो
मैंने भी कह दिया इश्क़ करता हूंँ
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वो आना जाना, करते ही रहते,
बिना लिखे, पढते ही भी रहते,
किताबों में ही, खोय हुई रहते
या कभी परेशान, रहने हल ढूंढते रहते,
पर अपना वक़्त, अपनो के निकाल ते रहते
दिल से सबको, अपना मानते रहते,
वो अपनी दोस्ती का, फर्ज निभाते रहते...!
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व्यस्त जिंदगी का ये असर है
रहते है एक घर में, पर सब के कोने अलग है-
रहते थे कभी उनके दिल में...अब रहते नहीं,
दास्ताँ-ए-जफ़ा उनकी,हम कभी कहते नहीं,
आँखें पथरा गईं मेरी...अश्क भी बहते नहीं,
दर्द से यारी कर ली,अब ज़ख़्म सिलते नहीं!
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न जाने हम कब खुद को सुरक्षित समझेंगे, मानेंगे और कहेंगे .... भारत देश में रहते हैं ....!
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ज़हन में मेरे कुछ सवाल चलते रहते है
कुछ ख्याल मेरी खामोशी में पलते रहते है
रूबरू हो जाऊ कुछ अंधेरो से भी में
क्योंकि कुछ साए हाथ पकड़ कर साथ चलते रहते है।।।-
इतना तो वो
खुद के घर पर भी नहीं रहते
जितना वो मेरे
जेहन में रहते हैं।
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ऐ चाँद क्यो खामोश हो
क्यो गुमसुम गुमसुम रहते हो ?
किसका है इंतजार तुम्हें
क्यों रात रात भर जगते हो ,,,??-
बड़े पगलाये पगलाये से रहते हो
इश्क़ हो गया है, या खो गया है।।-