"परिवार" कभी कभी ही मिलते हैं पर एक दूजे के दिल में बसते हैं, नहीं गयी दुआ कोई भी ऐसी जिसमें अपनों को याद ना करते हैं, सुख में शायद ना आ पायें पर दुःख में कभी ना पीछे हटते हैं, फिक्रमंद तुम हुए वहाँ पर यहाँ आँसू सबकी आँख से बहते हैं, निःस्वार्थ निश्छल ऐसे बन्धन को इस जग में " परिवार " कहते हैं।
थकती है पर करती है थमती है पर चलती है नींद है पर जगती है आँसू हैं पर हँसती है पीड़ा है पर जनती है एक है पर बटती है सिर्फ़ नारी ही है जो कोमल है पर शक्ति है।