मुझे रोता देखकर मेरे रब भी
मुस्कुराते होंगे घर की इज्जत का
किरदार बहुत अच्छे जो निभा रही हूं-
जाना तो सबको उस रब के ही घर है
बस कोई पगडंडियों से होके गुज़र रहा है
कोई.. खुले रास्तों से जा रहा है,
यह अमीरी यह ग़रीबी तो बस
आंखों का सुख-दुःख औऱ जीभ का स्वाद है,
बस यह जिस्म ही ख़्वाइशों के पिंजरे में बंद है
रूह तो सबकी आज़ाद है..!-
ज़िन्दगी.. एक पहेली
...कोई हल ना सूझे
देख मुसाफ़िर.. रब के अजूबे,
लिखकर क़िस्मत में..
मौत का.. इक़ बहाना
दे दिये जीने के लाख.. मंसूबे,
देख मुसाफ़िर.. रब के अजूबे!!-
आसुरीशक्ति से दूषित मन, हर पल हर क्षण तड़पाती है।
हिंसक वाणी दूषित विचार से, दिल घायल कर जाती है।
कदम बढ़े रब के द्वारे, आशा की किरण दिख जाती है।
श्रद्धा से करूं गुणगान तेरा,हर पल क्यों मुझे सताती है।
जाऊं मंदिर मस्ज़िद गुरुद्वारा,तू नज़र कहीं न आती है।
ढूंढू व्याकुल चिंतित अधीर,ना दिखे आंख भर आती है।
नयनों में नमी होठों पे गिला,पीर हृदय की बढ़ जाती है।
अश्कों से भरी आंखें बरसे,वेदना उद्विग्न कर जाती है।
आहट की सुध अनुमान करूं,जो दुःख में मुझे सुनाती है।
मैं रहूं पास तेरे साथ साथ, अंतस से आवाज़ आती है।
डर के न रुको कभी राही,साहस से बाधा टल जाती है।
हर कष्ट सह के संघर्ष कर,हर राह सुगम हो जाती है।-
मिटा देंगे हर नफरत काे अौर इस कदर हर रिश्ता निभाऐंगे,
गर खड़ी रहेगी नफरत रास्ते पर उसे भी हम प्रेम के जल में भिगाकर रब जैसे सागर में मिल जाएंगे!-
किसके मन में क्या रमा, "सबका" पता न कोई,
कौन कहाँ से वार करे, इस "जग" का पता न कोई,
मंदिर, मस्ज़िद, गुरुद्वारे, छान लिए सारे के सारे,
खुद को छोड़ सब ढूंढ़ लिया, "रब" का पता ना कोई..!
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खुली आंखों से देखीं दुनिया जब है..
मासूम चेहरे में शातिर यहां सब है..
जिसपे भी करो भरोसा वही ठग है..
“झूठा सारा जग है; सच्चा केवल रब है।”-
सुना है मां से भी बढ़कर तुझे उल्फत है बंदों से,
तो आकर जोड़ दे या रब मैं ख़ुद को तोड़ बैठा हूँ..!!-
तुम कहते हो कि तुमने झुकना नहीं सीखा
जनाब....मैं उस ख़ुदा पर यकीन करती हूँ
जो चट्टानों तक को हिला कर रख देता है!-