रचना को रच कर उसने
रचा है....रचनाकार को।-
दिल की मासूमियत को अपने तुम बरक़रार रखना।
जेब में पैसे हो या न हो, दिल में अपने प्यार रखना।
ये ज़िंदगी कभी भी इम्तिहान ले सकती है तुम्हारा।
ज़िंदगी के इम्तिहान के लिए ख़ुद को तैयार रखना।
अच्छा कुछ भी नहीं होता और न बुरा होता हैं कुछ।
बस सच होता हैं इस सच को अपने दर्मियां रखना।
न मैं किसी की "तारीफ़" करता हूँ और न ही बुराई।
ये मुसाफ़िर सब का सच कहता है, ये याद रखना।
कभी भी कुछ भी हो सकता है आज की दुनिया में।
सुन लो कि ख़ुद को तुम हमेशा ही होशियार रखना।
कल का लड़का आज कमाने वाला बन सकता हैं।
अपने अंदर के बच्चे को तुम सदा जिम्मेदार रखना।
अच्छे वक़्त में आयेंगे सब, तुम्हें बुलायेंगे भी हरदम।
बस बुरे वक़्त में अच्छा बनने को तुम तैयार रखना।
इंसान का व्यवहार बतलाता है कि तालीम कैसी है।
बुरे से अच्छा और अच्छों से बेहतर व्यवहार रखना।
मुझे नहीं पता ओ मेरे रब्बा मेरा अंज़ाम क्या होना है।
बस इतनी सी ख़्वाहिश है अंत तक मददगार रखना।
कोई क्या करता है तू इसकी फ़िकर मत कर "अभि"।
तू बस निःस्वार्थ सबके साथ अच्छा व्यवहार रखना।-
फलों से वृक्षों की पहचान तो हो सकती है।
पर रचनाओं से रचनाकारों की नहीं।-
शहादत याद रखेंगे, अंग्रेज़ों के खिलाफ़ उनकी जायज़ बगावत याद रक्खेंगे।
"माता भारती" के लिए जो "आजीवन" उन्होंने की थी वो इबादत याद रक्खेंगे।
जान की बाज़ी भी लगा दी थी जो देश की ख़ातिर वो हिमाकत याद रक्खेंगे।
"देशद्रोहियों" से जो थी उन वीर सपूतों की आमरण "अदावत" याद रक्खेंगे।
उन वीर सपूतों को हम बचा न सके आत्मग्लानी की नदामत याद रक्खेंगे।
सभी धर्म के देशभक्तों में जो आपसे में थी वो अटूट रफाक़त याद रक्खेंगे।
भारत माता की आजादी के लिए सभी शहीदों की मसाफ़त याद रक्खेंगे।
माता को ग़ुलामी की ज़ंजीर से छुड़ाने के लिए उनकी फ़ुरकत याद रक्खेंगे।
है कुछ आस्तीन के साँप जो हमारे शहीदों का सम्मान नहीं करते हैं "अभि"।
उम्मीद है आज के दौर में वो "एहसान फरामोश" हमारी हिदायत याद रक्खेंगे।-
अगर रचनाकार को तनिक भी भान होता,
आदम की मानसिकता इतनी तंग होगी ,
आपस में जंग होगा,द्वेष, मतभेद पालेंगे,
तो आदम की रचना न होती ।
अगर रचनाकार को ये मालूम होता,
मस्तिष्क का ऐसा कल होगा,
विस्फोटक का जन्म होगा,
मानव ही मानव का अन्त होगा,
जीवों पर जूल्म होगा,
तो मस्तिष्क की रचना न होती ।
अगर रचनाकार ये जान लेता,
कि मानव संरक्षक नहीं,विध्वंसक होगा,
तो उस चित्रकार की रचनाओं का आदम पर ,
न अन्त होता,उसकी कृतियों में,
आदम का न सबसे ऊपर स्थान होता ।।
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मैं
रचनाकार हूूँ ?
नहीं!
मैं तो गंभीर हूँ....!!
( शेष अनुशीर्षक में )-
तू ही रचनाकार प्रभु !
तू ही पालनहार ..
किसकी आस लगाऊँ भोले !
तू ही तारणहार ...-
एक सृजन करता ख़ुदा, दूजा करे कुम्हार ।
मिट्टी से ही खेलते, दोनों रचनाकार ।।१
सृजनशीलता देख कर, मैं तो हुई अवाक ।
तू गढ़ता कैसे ख़ुदा, ये तो गढ़ती चाक ।।२
दोनों रचनाकार हैं, अंतर मगर अतीव ।
एक गढ़े निर्जीव तो, दूजा गढ़े सजीव ।।३-
तकरीबन साढ़े तीन बरसों का एक शानदार सफ़र।ढाई हजार रचनाएं।राजस्थान की गर्म रेत भी खुशनुमा एहसास कराती है कि जब आप बातें करते हैं इश्क़ की,दुनिया की,हरे शज़रों के दर्द की,गरीब बेबस बच्चों की।सुंदर लिखावट,अप्रतिम तस्वीरें,मिलकर सँवारते हैं आपका रचना संसार।बेतहासा हंसी भी आती है उस स्कूटर वाली घटना पर।यकीनन वो भीड़ बहोत कुछ कह जाती है।अपने परिचय में आप खुद को लेखक या कि शायर होने से नकारते हैं लेकिन आपको पढ़ते हुए पता चलता है कि आप एक मंझे हुए खिलाड़ी हैं।जो कलम से बखूबी खेलना जानता है।पाठकों के दिल में उतरने के रास्तों से वो शख्स़ बाकायदा परिचित है।उसके कैमरे में जयपुर के हवामहल की तस्वीर ही नहीं है आधी दुनिया की एक नन्हीं तितली भी है जिसके कदमों में सजे घुंघरू जिंदगी की धुन सुना जाया करते हैं ।कभी हिंदी,कभी उर्दू तो कभी देववाणी संस्कृत में गढ़ी उनकी रचनाएं आश्चर्य में डालती हैं कि एक शख्स़ जो खुद को सिरफ़ एक सरकारी मुलाज़िम का तमगा देता है,वो आख़िर इतनी अनगिनत खूबियों का मालिक है तो किस तरह!मगर वो है।एक तपती दोपहरी में अनगिनत सवालों से जूझते हुए कुछ नया पढ़ने और सीखने की तलाश आपके शहर में लेकर आई थी मुझे और शायद मेरी तलाश पूरी भी हुई।आख़िर में सिर्फ़ यही कहकर जाना चाहूंगी कि आपका ये अद्भुत सफ़र यूं ही जारी रहे।लिखते रहें और दुनिया को राजस्थान और राजस्थानी तहजीब से परिचित कराते रहें।
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आप सृजनहार हो मेरी
क्यों जनती हो मुझे...?
लहू से सींचकर...
लूटने पीटने और वृद्धाश्रम
में मरने के लिए
इतना क्यों सह लेती हो
इस निर्मम संसार के लिए...
हाँ मैं सृजनहार हुँ...
संसार रचती हुँ
अपने कोख से
कोई नाम नही राम या रावण
सृजनहार हुँ...
मैं तो सिर्फ इंसान रचती हुँ!!-