जीवन्त 'श्रेय'   (शून्यानन्त©)
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Joined 12 January 2021


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प्रेम के समी'करण से या वेदना के चर से
हैं कविताएं ऊंची जिसकी नभों के शीर्ष शिखर से

{अनुशीर्षक में झांकती जाना }— % &

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सड़कों पर फिरते हैं मारे मारे बच्चे
कैसा है दुर्भाग्य हाय बेचारे बच्चे

कहीं है रोटी खाने को माखन के संग
कहीं एक टुकड़े को लड़ते सारे बच्चे

तकलीफों से डटकर लड़ने वाले थे वो
मगर भूख से लड़ते लड़ते हारे बच्चे

भरते हैं दम लोग मदद करने का जिनकी
उन्हीं के देखो जाते हैं फटकारे बच्चे

भगवानों को आना पड़ता है धरती पर
ऐसे होते हैं ये प्यारे प्यारे बच्चे

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ये बरसते
तो हैं
मगर
मेरे ही
ऊपर
और
इनका भार
मुझे
डुबाए दे
रहा है
समय से
पहले..!!
( शेष अनुशीर्षक में )

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तुमने किया
अत्यधिक
दोहन,
इस कारण
समाप्त हो गयी
मेरे ह्रदय से
'नमी'
विश्वास की,
एवं
'उर्वरता'
प्रेम के अंकुर
को उपजाने की,
संभवतः अब
कभी न उपज सके
उस पर
तुम्हारे प्रेम का पौधा..!!

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एकान्तप्रिय,
वास्तव में
नहीं होते
एकान्तवास में ।
सदैव
घिरे रहते हैं
वे
गहन
विचारों से,
कल्पनाओं से..!!

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ईयरफोन को चूमकर करें न रातें नष्ट
बाबू-बाबू बोलकर करें न बुद्धि भ्रष्ट

रातों को जागें नहीं बनकर उल्लू आप
न दें भूतों को यूँ ही सारी रात का कष्ट

करें न कोशिश भेंट की टैटू मिलेगा एक
पुलिस कहेगी आज तो हम आये हैं फर्स्ट

चार-चार से कॉल पर लगा है बाबू-भाई
शोना करे जो कॉल तो अभी लगाया जस्ट

साइकिल ऐसे प्रेम की चले न आगे जाये
जब दूजा मिल जाये तो टायर समझो बर्स्ट

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जब कोई अंगरेजी में पोस्ट करे

ले मी टू माई माइंड ⬇

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क्योंकि
कुतर
गये हैं न
चूहे
उस
जेब को..!!
(अनुशीर्षक में पढ़ें )

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मैं
रचनाकार हूूँ ?
नहीं!
मैं तो गंभीर हूँ....!!

( शेष अनुशीर्षक में )

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आज तुम
अपने घर हो,
तो
समझ आता है,
ममता तो है
घर में
मगर अाधी-सी...!!

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