प्रेम के समी'करण से या वेदना के चर से
हैं कविताएं ऊंची जिसकी नभों के शीर्ष शिखर से
{अनुशीर्षक में झांकती जाना }— % &-
_____[ प्रादुर्भाव दिवस :- 10 जून ]_____
🌸 हिन्दी भाष... read more
सड़कों पर फिरते हैं मारे मारे बच्चे
कैसा है दुर्भाग्य हाय बेचारे बच्चे
कहीं है रोटी खाने को माखन के संग
कहीं एक टुकड़े को लड़ते सारे बच्चे
तकलीफों से डटकर लड़ने वाले थे वो
मगर भूख से लड़ते लड़ते हारे बच्चे
भरते हैं दम लोग मदद करने का जिनकी
उन्हीं के देखो जाते हैं फटकारे बच्चे
भगवानों को आना पड़ता है धरती पर
ऐसे होते हैं ये प्यारे प्यारे बच्चे-
ये बरसते
तो हैं
मगर
मेरे ही
ऊपर
और
इनका भार
मुझे
डुबाए दे
रहा है
समय से
पहले..!!
( शेष अनुशीर्षक में )-
तुमने किया
अत्यधिक
दोहन,
इस कारण
समाप्त हो गयी
मेरे ह्रदय से
'नमी'
विश्वास की,
एवं
'उर्वरता'
प्रेम के अंकुर
को उपजाने की,
संभवतः अब
कभी न उपज सके
उस पर
तुम्हारे प्रेम का पौधा..!!-
एकान्तप्रिय,
वास्तव में
नहीं होते
एकान्तवास में ।
सदैव
घिरे रहते हैं
वे
गहन
विचारों से,
कल्पनाओं से..!!-
ईयरफोन को चूमकर करें न रातें नष्ट
बाबू-बाबू बोलकर करें न बुद्धि भ्रष्ट
रातों को जागें नहीं बनकर उल्लू आप
न दें भूतों को यूँ ही सारी रात का कष्ट
करें न कोशिश भेंट की टैटू मिलेगा एक
पुलिस कहेगी आज तो हम आये हैं फर्स्ट
चार-चार से कॉल पर लगा है बाबू-भाई
शोना करे जो कॉल तो अभी लगाया जस्ट
साइकिल ऐसे प्रेम की चले न आगे जाये
जब दूजा मिल जाये तो टायर समझो बर्स्ट-
आज तुम
अपने घर हो,
तो
समझ आता है,
ममता तो है
घर में
मगर अाधी-सी...!!-
अलसुबह,
बिजली के तारों पर
झूलता एक काग..!!
सुनाई दीं,
मजलूमों की चीखें
कर्कश ध्वनि में....!!
मैंने उड़ा दिया,
उसमें नहीं थीं न
मेरे अपनों की आहें..!!-