क्या कह दूँ..!
आदत न ऐसी मेरी है
जो कहा वही करना होगा
कुछ ऐसी फितरत मेरी है
मौसम की तरह बदल जाऊ
आदत न ऐसी मेरी है
जो वचन दिया उसकी खातिर
हानि-लाभ जस-अपजस की परवाह नही
जो कहा गया उसकी खातिर
जीवन का दांव लगा देना
माना आसान नही है
कह के, बात निभा जाना
रघुनंदन के हम वंशज है
मुश्किल है कह के भुला देना-
हे रघुनंदन
जय रघुवंदन जय सियाराम
हर पीड़ा हरे तेरा नाम..।।ध्रु।।
तूने ही तो पाठ दिया
जग को हे घनश्याम
कैसे त्यागे भोग विलास।
हे पुरुषोत्तम जग के स्वामी
तूने ही तो सींची है ये
मर्यादो की ये रेशा।
हे प्रभु राम तव चरणों में
लीन हुए ये महाकाल
देके जय सियाराम का संदेशा।
तूने ही तो बंधुओ में
अब तक है भाई प्रेम रचा
तुजबीन ना कोई घर बसा।
बोलो जय सियाराम जय जय सियाराम
रघुकुल नंदन हे प्रभु श्री राम..…!
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हे सुख सदन हे रघुनंदन
हृदय बसो कर दो मन चंदन।
माटी का तन माटी का मन
हृदय बसो कर दो अमृतमय ।।-
सनातनी समाज ने भरी हुंकार है!
भगवान राम के अयोध्या आगमन की पुकार है!!
असंख्य पुष्प बिछाकर स्वागत करने को आतुर हर मन!
दीपोत्सव मनाने को तत्पर हर घर आंगन!!
राम नाम की गूंज से हर्षित हर जन का मन!
शंखनाद और हवन से सुवासित वातावरण!!
मंत्रोच्चार वैदिक रीति से कर किया है जग ने आह्वान!
साकार स्वरूप में पधारो हे कौशल्या दशरथ के नंदन!!
भगवा रंग में रंगी है वसुधा पुलकित है हम सब का मन!
श्वास श्वास बस यही पुकारे जय हो तेरी रघुनंदन!!-
🌹हे रघुनाथ घट घट के वासी🌹
हे रघुनंदन दशरथ नंदन, हे रघुनाथ घट घट के वासी,
राम लला तेरे दरस को तरसे, हम सभी भारत वासी।
सदियों बाद अब पूर्ण हुआ, भारत का जो सपना था,
अवध नगर में राम लला का, पूर्ण रूपेण स्थापना था।
अपने भारत देश में रहकर, हम बने हुए थे वनवासी,
राम लला तेरे दरस को तरसे, हम सभी भारत वासी।
सीता मैया को हरकर, जो अपने अभिमान में ऐंठा था,
चंद्रहास शक्ति के बल पर, लंका में छुपकर बैठा था।
उसी तरह रावण बने बैठे, हैं अपने देश के कुछ वासी,
राम लला तेरे दरस को तरसे, हम सभी भारत वासी।
लगता है अपने भारत में, राम राज्य फिर से आयेगा,
रघुकुल शिरोमणि का अब, वनवास खत्म हो जायेगा।
लौटकर आयेंगे प्रभु, अब अपनी अयोध्या नगरी में,
सदियों बाद भारत देश में, सनातन धर्म मुस्कुरायेगा।
उठो जागो हे भारत वासी, अब वक़्त नहीं है सोने का,
अपने देश की बागडोर, अब भूलकर भी नहीं खोने का।
मंथरा की टोली है देश में, जो तेरे गुलामी की है प्यासी,
राम लला तेरे दरस को तरसे, हम सभी भारत वासी।
हे रघुनंदन दशरथ नंदन, हे रघुनाथ घट घट के वासी,
राम लला तेरे दरस को तरसे, हम सभी भारत वासी।-
जय सियाराम जी
रंगों में घुलकर खुशबू आई, प्रेम सुधा यूं बरसाने,
आओ मिलकर होली खेलें, बैर-भाव सभी अब मिटाने।
श्री रघुनंदन का आशीष हो, सुख-शांति सदैव ही बरसे,
मन में प्रभु श्री राम बसे, रंग खुशियों के यूं बरसाने।
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माता कौशल्या की गोदी में शोभित है बालक रघुनंदन।
दर्शन करके सब आनन्दित,करते हैं हम प्रभु का वंदन।
वो आराध्य हमारे हैं, हम सब उनको शीश झुकाते हैं-
कर में कंगन,पांव पैजनिया ,माथे पर है तिलक चंदन।
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दुखों में आस राम हैं, सभी के पास राम हैं
राम ही ह्रदय गति, और हवा में सांस राम हैं..
शिव त्रिशूल राम हैं, धनुष में बाण राम हैं,
राम ही धरा पे जीव, और अंतः प्राण राम हैं !!-