संतुष्टि की परिभाषा है
सतत् अभ्यास कर जीना इसमें
कठिन नहीं बहुत आसां है
जो मिला जितना मिला
उसमें कर शुकराना रब का
छोड़ शिकायत करना अभाव का
उपलब्ध जितना उसमें सुख है-
सागर की सच्चाई जानने को
आतुर था कबसे इंसान का मन
विस्तारित विशाल न कोई सीमा
गहराई की थाह लेना था कठिन
जैसे जैसे सागर को जाना
जाना उसका खारापन
गहराई में ढूंढ निकाला सच्चे मोती और रतन
सच ही कहते कहने वाले जानना हो किसी का मन
दिल में उसके उतर कर देखो कैसा है उसका
मन आंगन-
लाल सिंदूर लाल चूड़ियां लाल जोड़े का क्या कहना
मेरे तीज त्यौहार सभी कुछ तुझसे है मेरे सजना-
चांद का नूर भी
कुछ फीका पड़ जाएगा
तेरे सोलह श्रृंगार देख
होश उनका उड़ जाएगा-
चंद्रमा को साक्षी मानकर
गणपति जी का पूजन करके
शिवशक्ति से करुं वंदना
सदा सुहागिन का वर देकर
पूरन करो मेरी कामना
जीवनपर्यंत श्रंगार करुं मैं
महकाऊं सजना घर अंगना-
की हद तक अपमान कभी भी मत सहना
बेहतर है समय रहते ही सजग रहना
सबसे बुरा है जग में अपनी नज़रों में गिरना
इस सीमा को लांघने की इज़ाजत किसी को मत देना
अपमानित होकर महफ़िल में कदापि न रहना
इससे बेहतर है तन्हाई में प्रसन्नचित्त रहना
खुला आसमान दिया है रब ने पंछी की भांति उड़ना
किसी भी हालत में कभी भी
आत्मसम्मान का सौदा मत करना-
समय की गुज़ारिश है कुछ पल ठहर जाओ
शोखियां लहरों सी छोड़कर अब संभल जाओ-
देकर ही सम्मान पा सकते हो
वरना तो दोयम दर्जे की
ही पात्रता हासिल कर सकते हो
किंचित भेदभाव नहीं किया
रब ने जब मानव के सृजन में
फिर क्यों इतराते फिरते हो जीते हो किस भरम मे
सम्मान का अधिकारी जीव जंतु और सृष्टि है
मर्यादा पुरुषोत्तम के चरित्र में
मिलती इसकी झांकी है-
उसके हाथों की कठपुतली
हैं सृष्टि का जन जीवन
बिना उसकी इच्छा के
हिलता नहीं एक भी पात
जाने किस भुलावे में रहता
अहंकारी मानव का मन
जबकि उसकी पतवार को थामे हुए है
निराकार साकार भगवन
हर आती जाती स्वांस है
तेरी मर्जी से भगवन-
विस्मृत हो गया वो खेल धुंधुली सी याद बस बाकी है
एक आंगन से दूसरे आंगन
शादी की तैयारी में बड़े भी शिरकत करते थे
मां से गुड्डा-गुड्डी के कपड़े सिलवाया करते थे
धमाचौकड़ी के बीच शादी की आपाधापी में
गर्मियों में आंगन चहका करते थे
गुज़रें ज़माने की यादों की धुंधुली सी झांकी बाकी है
आजकल के बचपन में ये सब बातें बासी है-