मोह का प्रेम का बस इतना सा परिचय है
मोह स्वहित और स्वार्थ चाहता है
और प्रेम त्याग समर्पण और विश्वास चाहता है
मोह बंधन की बेड़ियों में बांधता है
और प्रेम विश्वास की अदृश्य डोर को थामता है-
गहराई का मर्म छिपा है
बस इतनी सी बात में
वैभव विलास में अति होने से
दया का क्षय हो जाता है
व्यक्ति निज अहंकार वश
मद में चूर हो जाता है
वैभव विलास में भक्ति होने से
करुणा का उदय हो जाता है
हर नर में प्राणी को तब
नारायण दरश मिल जाता है-
अति कभी भी कहीं भी लाभकारी नहीं होती है
हो अति का खाना या अति का हो भोजन त्यागना
हो अति का आलस या अति का हो व्यायाम
दोनों ही स्थितियों में मानव देता है शरीर को प्रताड़ना
संतुलित हो आहार संग संतुलित हो व्यायाम
अनुवांशिकी पर निर्भर करता मानव का शारीरिक मापदंड
एक ही मिली ज़िन्दगी जब क्यों जीना मन मार
संतुलित और अनुशासित हो जीवन का व्यवहार-
दोस्ती ये अपनी
हर हाल में निभाएंगे
व्यस्तता भरी ज़िन्दगी में
तुमको हम याद आएंगे-
भेद न हो किंचित भी गुण अवगुण हो समान
ऐसे सभी मित्रों को मधुशिल्पी का प्रणाम-
दोस्ती का सबसे पहला उसूल यही है!
कि दोस्ती का कोई उसूल नही होता!!
बिना दिमाग लगाए दिल से जो रिश्ता निभाए!
क्योंकि दोस्ती में व्यापार नही होता!!
बिना बुलाए जो जन्मदिन पर आ धमके!
केक नहीं तो खिचड़ी ही कटवाए!!
ऐसे वेले दो चार मिल जाएं!
दोस्तों की महफ़िल जम जाए!!
वक्त भी मानो ठहर सा जाए!
बढ़ती उम्र में भी बचपन जी जाए!!
कोई भेद जिससे छिप न पाए!
खुशनसीब हैं वो जो ऐसे यार को पाए!!-
हुआ करती थी
ऐसी नज़र लगी ज़माने की
संग साथ रहने वाली
जाने कब दूर हुई
मुट्ठी से फिसलती रेत सी
वो इस दुनिया से विलुप्त हुई-
वही काग़ज़ पर उतर जाता है
विषय फिर चाहे कोई भी हो
भगवत प्रसंग उभर आता है
बड़ी कृपा है मुझ पर
मेरे सियाराम की
शब्दों के माध्यम से
उल्लेख अपना करवाता है-
ना ख्वाहिशें फूलों की
ना शिकायतें कांटों की
हर हाल में खुश हूं सोचकर
जैसी इच्छा मेरे राम की-