शिल्पी सक्सेना   (©मधुशिल्पी)
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Joined 3 May 2019


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विलुप्त प्राय है
ज्ञान चक्षु से दिखता
सब माया का पर्याय है

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चांद के हिंडोले पर ले चल अब मुझको साजन
बादलों के उस पार बनाएं हम आशियां अपना साजन

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धूप की तपिश की नहीं मुझको खबर

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आग में तपकर ही
परख सोने की होती है
मुश्किलों की भट्टी में
हौसलों की परख होती है

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सुकून की तलाश है
आध्यात्म से साक्षात्कार हो
एकांत की दरकार है

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चिता की आग महज़ एक बेजान तन जलाती है
मोहब्बत की आग बैरन रूह सुलगाती है

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कितनी हसीन वो प्रेम कहानियां होती हैं
जिन्हें हम किताबों में पढ़ते हैं

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मुस्कुराहट में छिपे दर्द
की तासीर बेहद गर्म है
सुलगती है ज़िंदगी इसमें
दरकते हर ज़ख्म है

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जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं भैया
आप दीर्घायु हों यही ईश्वर से प्रार्थना हमारी

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मां के गर्भ से ही शुरू हो गई थी
तभी तो लातों की धमाचौकड़ी
मां ने हंसकर के सही थी
उस पर दिल ना भरा जब मेरा
एक साथी और साथ में लेकर आई थी
फिर तो शरारतों से मां का जीना हुआ दुश्वार
और हम दोनों शैतानों का पूछो न दिल का हाल
तब से जो सिलसिला शरारतों का शुरू हुआ
आज तक ना थमा शरारतों का सुरताल

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