कूचे को तेरे छोड़ कर
जोगी ही बन जाएँ मगर
जंगल तेरे, पर्वत तेरे, बस्ती तेरी, सहरा तेरा-
बंजर जमीन पर प्रेम उगा कर क्या होगा
किसी योगी से दिल लगा कर क्या होगा-
सत्ता के मद में चूर सिंहासन तेरा बोल रहा
शब्दों को कुचल कर सिंहासन तेरा डोल रहा
है वो ठाकुर फिर भी मै बोल रहा
दोष था ना इतना बड़ा मृत यादव बोल रहा
दिया तुमको किसने अधिकार जन जन बोल रहा
है वो निर्दोष मृत शरीर बोल रहा
पैसे लूट की बात थी पुलिस तुम्हारी भ्रष्टाचार थी
सुनो अब तुम सरकार करो इसकी सीबीआई जांच
नहीं है अब तुम पर विश्वास ये पुलिस तुम्हारी है बेकार
कैसी चलेगी सरकार
कल की बात है हर कोई है बेरोजगार
मांगे बैनर दिखा तुझसे रोजगार
सिंहासन के मत में चूर डांटा उसे बार बार
रोजगार तो दे ना सके बद्दुआ दिए हजार
कह दिए नवयुवकों से तेरा नायक है बेकार
रहोगे तुम आजीवन भर बेरोजगार
खेत चर गए पशु सारे
हो गए हम कंगाल पेट का मारा अब क्या करे बेचारा
सरकारी नौकरी की बात ना करो सबके है परिणाम अधूरे
कुछ तो जागो तुम सरकार दो हमको रोजगार
।। अनिल प्रयागराज वाला ।।
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नए नए प्रयोग कर, तू कर्मयोगी बन कर्म योग कर।
अपनी आंतरिक ऊर्जा का सकारात्मक प्रयोग कर।
बाह्य और मानसिक सभी हिदायतों का पालन कर।
जो भी मिलता है अनुभव तू उनका सदुपयोग कर।
अच्छी बातों का और आदतों को तू आत्मसात कर।
बुरी सोच, लोलुपता और कुकर्म से तू "वियोग" कर।
सुखमय हो तुम्हारा जीवन प्रकृति का उपयोग कर।
प्राकृतिक संपदाओं का कभी भी न तू उपभोग कर।
जल्दी पाने के जो रास्ते होते है वो दिग्भ्रमित करते हैं।
तू गलत का घटाव और सही का जीवन में योग कर।
तुम्हें जो भी पसंद हैं उसे ही तू अपना-सही माना कर।
अपने मन को गीता मान स्वयं को चुनाव आयोग कर।
कभी भी ऐसा न लगे "अभि" कुछ भी भाग्य से मिला।
तू कुछ ऐसा कर अपनी नियति को सफल संयोग बना।-
कैसा झगड़ा उसने कोई गुनाह-ए-अज़ीम तो नही कर दिया
फ़क़त मन भरा खिलौने से तो जला कर राख कर दिया
मोहब्बत की तपिश में,
एक पत्थर को उसने मोम किया
फिर बेवफाई की आग में जलाया
और राख कर दिया |
किस्सा तो ये भी मशहूर हैं उसकी जफ़ा का उसकी बस्ती में
एक योगी को उसने आशिक़ किया,
फिर इश्क़ में पागल किया
अंत बेवफाई में लपेट वियोग का रोग दिया
,,,,,, और राख कर दिया |-
सुनो ना!
ये जो प्रेम है
मेरी दसों उँगलियों के पोरों पर
चक्र बना गया है
अब तो मानोगे ना
प्रेम में मेरा राजयोग चल रहा.
अगर दाएं पाँव का अँगूठा छोड़ दूँ
तो उन नन्हीं उँगलियों में भी
सारे के सारे चक्र हैं
अब तो ले चलोगे ना
अपने साथ किसी दूसरे ग्रह पर
तब तक मैं
ये अंतिम चक्र भी बनाती हूँ.-
योग ज़रुरी है जीवन में इससे ही मानव ईश्वर से जुड़ जाता हैं।
योग व ध्यान से ही व्यक्ति को जीवन यथार्थ समझ आता हैं।
योग तल्लीन व्यक्ति जीवन की उपयोगिता सिद्ध कर पाता हैं।
योग से ही जीवन की सभी व्याधियों से छुटकारा मिल पाता हैं।
योग से जुड़ने के बाद ही जीवन चिंता व रोग मुक्त हो जाता हैं।
ध्यान में आने के बाद ही जीवन का मतलब पता चल पाता हैं।
जबसे खुदको योग व ध्यान से जोड़ा है मैंने तबसे सुखमय हूँ।
रोग-दोष, व्याधि, विपदा दूर हो गई, प्रसन्नचित्त व भावमय हूँ।
ध्यान से ध्यान लगाकर के मैंने साथियों अब स्वयं को पाया है।
सकारात्मकता व्याप्त है अब मुझमें, जीवन जीने अब आया है।
क्रोध, ईर्ष्या, "मोह-माया", छल-कपट से कोसों दूर रहता हूँ मैं।
अंतर्रात्मा की आवाज़ सुनता हूँ मैं और अपनी धुन में रहता हूँ।
"आत्ममंथन" से "आत्मज्ञान" मिला, जीवन का मुझको सार मिला।
इस मतलबी दुनिया में भी मुझको अपना स्वर्ग सा संसार मिला।
जनकल्याण को तत्पर हूँ मैं "अभि" आगे भी सबका कल्याण करना है।
इस संसार में रहकर के इस संसार को स्वर्ग स्वरूप प्राण भरना है।-