हाँ तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो..
नही क्रश नही हो तुम मेरे ना ही कभी थे.. सच कहूं ना तुम मेरा भूत हो ना ही वर्तमान और ना ही भविष्य
फिरभी मैंने जाने क्यों तुम्हारे साथ कई अधूरे सपने देखे हैं ।
तुम जब से मेरे जीवन में आए हो मेरा यकीन बन कर रहे हो ....जो मुझे हार के डर से बाहर लाता है।
जो मुझे जीतते हुए देखना चाहता है।
हां ....यकीन ही तो हो तुम मेरा मैं कह नहीं पाई तुमसे कभी...
लेकिन सच कहो क्या तुम समझ पाए कभी मेरी अनकही को??? कौन हो तुम???
तुम मुझे जब भी मिले कतरों में ही मिले उलझे हुए से किसी और मे .....
मैं तुमसे कहना चाहती थी लेकिन मुझे पता था कि ...खोजना बिन खोई चीज का कितना मुश्किल है और ढूंढना उसमें किसी ऐसे प्रतिबिंब को जो तुम्हारा है ही नही ।
नहीं.. मैं हारी नहीं ,मैंने हर कतरे को एक-एक करके रंगना शुरू कर दिया अब अक्सर उन रंगों के कतरों में रंग लेती हूं खुद को ...
अब जो देखोगे ना तुम मुझे तो तुम्हे मुझ में तुम्हारी छवि नजर आएगी।
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