होकर फना यु दर दर भटक आयी है
भीगी ख़ुशबू जागीर सतह की साथ लाई है..
क्षार होने का एक प्रण साथ खुद लिये
सगे किनारे तक वो खुद पीछे छोड़ आई है..-
आज की भोर में,थोड़ा शोर था।
वो यही है कही,की सोच में बस दिन गुजर रहा था,
वो यही है कही...
की सोच में बस दिन गुजर रहा था।
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अभिव्यक्ति से नहीं घबराते तो प्रतिक्रियाओं से भी मत घबराओ। प्रतिभा भीतर है तो उत्साह भी बाहर आने दो। बनो वो जिजीविषा जो दो पत्थरों के मध्य उग आये अंकुर में विराजमान है। पतझड़ में गिरे पीले पत्ते का वो भरोसा मत बनो जो कहता है कि वो पुनः हरा नहीं हो सकता। तुम हाड़ मांस से कम और भावनाओं से ओतप्रोत अधिक हो। स्वयं को बचाना है तो स्वयं के लिए जीना सीखो।
सुप्रभातम।-
जीवन का हर मौसम
एक सा नहीं होता
किसी के हिस्से धूप
किसी के छाँव
ये चलते रहता ,
हर परिस्थियों में जो
खुद को संभालता चले
उसके लिये कभी कुछ
मुश्किल नहीं होता ॥-
दूर अन्धेरा करके देखो सूरज उग आया है
सबके जीवन मैं देखो नया सवेरा लाया है
🌷🙏शुभ-प्रभात🌷🙏
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मुक्तिद्वार तुम ही हर भाव हर संवेदना हो तुम,
ओष्ठ की हो मुस्कान कभी हृदय वेदना हो तुम।
मैं करूँ परिभाषित कैसे तुम संग ये बन्धन मेरा,
छंद सज्जित कविता हूँ मैं और प्रेरणा हो तुम।।-
जैसा वर्तमान क्षण, वैसा ही मन
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[अनुशीर्षक]-
हुई सुबह भी आंखों मैं नमी के साथ
जिंदगी चल तो रही है,एक बड़ी कमी के साथ
मैं अपनी दुनिया मे खुस हु आसमानो के संग
बस चल नही सकता दो पल भी अपनी जमी के साथ
है जरूरी क्या और जरूरत किसकी है जिंदगी को
एक दिन पूछ ही लूंगा जाकर मैं रब के पास
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