आज बेरोजगारी के आलम में भरा मैदान देखा है। लग के लाइनों में सुबह को शाम देखा है। फिर भी जॉब न मिली भैया ये देश का हाल देखा है एक पीछे हजार ऐसा बेरोजगारी का बँटाधर देखा है।
तू शाहीन ए इकबाल है इंक़लाब पैदा कर, जो ढाह दे कुफ्र के पहाड़ों को कुब्बत ए परवाज़ पैदा कर, कलम भी तू, शमशीर भी तू, साहिब-ए-किताब भी तू, पिघला दे आफताब कल्ब की तपिश, गर वो ईमान पैदा कर।
इन हसीन वादियों से पूछो खूबसूरती क्या है। इस खुले मैदान से पूछो ठराव क्या है।। इन हवा की लहरों से पूछो सादगी क्या है। इस उगते सूर्य से पूछो तप कर चमकना क्या है।। (धामा आशीष)