कहाँ ? मेहताब लाने की, बातें करते थे..,
आज ! तीरगी में, डूबी हुई हूँ, और वो.......,
शमा, जलाने तक , नहीं आते है......।।-
हम तो, गुलो के फूलों में.....,
शब के मेहताब में, तुम्हें याद करते है.....,
ज़रा! तुम बताओ, किस अंदाज़ में,
हम तुम्हारी यादों में, याद आते है....॥-
तुम्हें कभी, तिरगी में चमकता, मेहताब केह देते है,
तो कभी, मेज़ पर पड़ी, अपनी पसंदीदा, किताब केह देते है.....!
देख....!
कितने हसीन है हम, हर अपनी चीजों को, तेरी,
पहचान दे देते है, हम.....!-
छलकाएगे के जाम भी, देखेंगे मेहताब भी
बिताएंगे तन्हाई की आगोश में रात भी
तुम रहना ओढ़ अपने सपनों को
हम रखेंगे तुम्हें यादों में भी, चाहेंगे बातों में भी-
आज फिर उनसे सपनों में मुलाकात हुई
ख़ामोश थे लब और आँखों ही आँखों में बात हुई
फिर वही जज्बातों का उमड़ा सैलाब था
फिर चांदनी के आगोश में उसका महताब था-
उठ कर जिन्दगी की किताब लिखेंगे
हम वो नहीं जो गमों का हिसाब रखेंगे
माना जिन्दगी मुश्किल है
फिर भी वादा रहा जिन्दगी, हम मेहताब लिखेंगे ।।।-
मुहब्ब्त का तमाशा उस रात सरेआम हुआ
जिस रात आफ़ताब-ए-आशिक
मेहताब-ए-हुस्न के नाम हुआ-
है नींद मुझमे,मेरी आंखों को अब ख़्वाब नही है,
वीराने से गुज़र रहा जिंदगी अब मेहताब नही है।-
मेहताब ढल जाएगा
खामोशी में फिर एक रात,
ज़हन में तो सितारों को
खोने का डर सताता है।-
ये रात ही तो है जो मुझे हर रोज मुझसे मिला जाती है,
रात की तन्हाई में खुद को थोड़ा ओर बेहतर जान पाती है,
तारों के बिस्तर और उस मेहताब से मुझे रूबरू कराती है,
ये रात मेरी दोस्त ही है जो मुझे मेरी अहमियत याद दिलाती है।-