शफ़क़ हो ,चाँदनी हो ,कहकशाँ या फ़ूल प्यारे भी
नहीं तुम सा कहीं जादू ,सभी देखे नज़ारे भी
तुम्हारी मुस्कुराहट में इज़ाफ़े हम अगर कर दें
लगेगा हो गए पूरे सभी अरमाँ हमारे भी
वो लम्हा थम गया मुझ में, निगाहें जब मिलाईं थीं
कभी इक पल हुआ शामिल,ख्यालों में तुम्हारे भी?
तुम्हें छूने की ख़्वाहिश ही फ़क़त अब तक अधूरी है
बढ़ा कर हाथ यूँ तो छू लिए हैं चाँद तारे भी
जुड़ी तुमसे हैं जो यादें ,रखीं दिल के समंदर में
बहा के ले न जाएँ वक़्त के ये तेज़ धारे भी
शिक़ायत ये नहीं हम में न मुस्तक़बिल दिखा ऐ दीप
कुसूर इस मुफ़लिसी का ही रहा जो इश्क़ हारे भी
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