QUOTES ON #मुफ़लिसी

#मुफ़लिसी quotes

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13 MAY 2021 AT 15:09

क्यों तौल दिया तुमने
इंसान को उसकी जातों से,
मुफ़लिसी में पेट किसी का
भरता नहीं हैं बातों से।

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1 MAY 2020 AT 14:46

जब हालात हो भूखे मरने के
कोई चारा ना हो सिवाय कमाने के
शौक दम तोड़ देते है बचपन में ही
जब घर में नही हो दाने खाने के...।

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1 MAY 2020 AT 15:20

वो मुफलिसी में जी रहा है
फिर भी अपना ईमान नहीं खोया
वो मेहनतकश मजदूर है
उसने अपना स्वाभिमान नहीं खोया।

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5 MAY 2020 AT 12:23

मैं ढूँढता रहा मुफ़लिसों के घर पक्की बस्तियों में...
सड़को पर आया तो जमीं बिछोना थी
आसमां की चादर तले...।

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10 MAY 2020 AT 11:35

वो कौन था?
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घर से था वो बहुत दूर
सब कुछ हो चुका था बंद
उसमें उसका क्या कसूर था
दिन में कमाने से शाम का खाना बनता था
अब वो कहाँ से चुगकर लाता दाना
हालात हो गए भूखे मरने के
घर जाने के सिवा कोई चारा ना था
हुकूमत ने नहीं ली उनकी कोई सुध
तो निकल पड़ा वो पैदल उसे घर जाना था
दूरी ज्यादा थी घर की जाना आसां न था
फिर भी वो चलता रहा उसे घर को जाना था
कब तक चलता वो थक कर चूर हो गया
आराम के लिए वो पटरी पर ही सो गया
बस ट्रेनें नहीं थी उसके जाने के लिए
सब कुछ बन्द था आने जाने के लिए
बेफिक्र था ट्रेन से इसलिए पटरी पर लेट गया
थकान इतनी थी नशे की नींद सो गया
जो ट्रेन चलनी थी उसको ले जाने के लिए
वो उनके ऊपर चली ऊपर ले जाने के लिए
हुकूमत कर देती उनकी व्यवस्था
तो नहीं होती उनकी हालत ख़स्ता
आप जान गए होंगे वो कौन है
वो हुकूमत का सताया हुआ
रोटी से दूर मजबूर मजदूर था..।

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8 SEP 2017 AT 23:58

ये मुफ़लिसी भी ऐसी खूब चुनौती है
जहाँ भूख पर जीत पाने के लिए
ख्वाहिशें हारनी पड़ती हैं...

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25 SEP 2018 AT 22:32

ज़ेब छोटी भी रहे तो भी नहीं है कोई ग़म
हाथ फिर भी ये कफ़-ए-दिलदार होना चाहिए।।

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18 JUN 2017 AT 2:06

धोखा दे रहा हूँ 'मुफ़लिसी' को
चंद सिक्कों में 'लाखों का' मुस्कुरा रहा हूँ

- साकेत गर्ग

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28 SEP 2021 AT 7:30

शफ़क़ हो ,चाँदनी हो ,कहकशाँ या फ़ूल प्यारे भी
नहीं तुम सा कहीं जादू ,सभी देखे नज़ारे भी

तुम्हारी मुस्कुराहट में इज़ाफ़े हम अगर कर दें
लगेगा हो गए पूरे सभी अरमाँ हमारे भी

वो लम्हा थम गया मुझ में, निगाहें जब मिलाईं थीं
कभी इक पल हुआ शामिल,ख्यालों में तुम्हारे भी?

तुम्हें छूने की ख़्वाहिश ही फ़क़त अब तक अधूरी है
बढ़ा कर हाथ यूँ तो छू लिए हैं चाँद तारे भी

जुड़ी तुमसे हैं जो यादें ,रखीं दिल के समंदर में
बहा के ले न जाएँ वक़्त के ये तेज़ धारे भी

शिक़ायत ये नहीं हम में न मुस्तक़बिल दिखा ऐ दीप
कुसूर इस मुफ़लिसी का ही रहा जो इश्क़ हारे भी

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26 MAY 2020 AT 8:28

ख़्वाब तो मेरे भी अनमोल थे 'अभिषेक'
लेकिन मुफ़लिसी में बिक गए रोटियों के भाव

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