कुछ ख़याल ही अपना रहता नहीं
आजकल मुझमें ही मैं रहता नहीं!!-
ऊँचे पहाड़ों को देखकर अक्सर सोचती हूँ
सदियों से जड़वत, सामन्जस बनाये एक इन्च भी ना हिले
दृढता, ठहराव और निश्चलता जो इनमें है, मुझमें क्यूँ नहीं।
दूर दूर तक सफ़ेद बर्फ की मखमली चादर में लिपटे
कहीं चीड, चिनार और देवदार की हरी चुनरी ओढे
विविधता, सादगी और सुन्दरता जो इनमें है, मुझमें क्यूँ नहीं।
उपर और उपर, बस उपर उठते जाना
कभी हवा कभी पानी बनकर और कभी ढाल बनकर
सेवा करने की चाह, भाव और समर्पण जो इनमें है, मुझमें क्यूँ नहीं।
मानवीय कृत्यों को उन्ही के अंदाज में बदला लेने
बडे बडे पत्थरों को लुडका कर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की
उदन्डता, आक्रोश और प्रतिशोध जो इनमें है, मुझमें क्यूँ नहीं।।
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तेरे इश्क़ ने निखारा इस कदर
वरना कहाँ था मुझमें कोई हुनर
- ©सचिन यादव-
तेरा इश्क़ , इश्क़ है जाना...
मेरी मोहब्बत कुछ भी नहीं..?
तेरी आंखों में आसूं है जाना.
मेरी आंखों की लाली कुछ भी नहीं..?
तेरे ग़ज़लों में सच्चाई है जाना...
मेरे अल्फ़ाज़ कुछ भी नहीं..?
तेरी नाराज़गी सही है जाना...
मेरा रूठना कुछ भी नहीं...?
तुझमें मेरी यादों का समुन्द्र है जाना....
मुझमें तेरा कुछ भी नहीं..?
_zeenat Firdous
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मैं वक़्त बन जाऊं तू बन जाना कोई लम्हा
मैं तुझमें गुजर जाऊं तू मुझमें गुजर जाना-
इस जिंदगी को जरा सा अपना कहने दो,
मुझमें कुछ थोड़ा सा ,मेरा रहने दो।
ख्वाहिशें तो फिसल गई मुठ्ठी से रेत की तरह,
सुकून को अब जरा ,सांसों में बहने दो।
हसरतों ही हसरतों में जिंदगी तमाम हो गई,
बचे हुए लम्हों की ,मुस्कुराहटें सहने दो।
थोड़े से आसमां की तलब दिल को हो रही है,
हजारों बंदिशों के खंडहर, अब तो ढहने दो।
अदावतें दुनिया की बहुत मंजूर हो गई हैं,
बस और नहीं आज़माईशें,अब ना कहने दो।
.......निशि..🍁🍁
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सोचता हूं जब कभी कि कुछ तो है तेरा मुझमे बाकी ,
वो तेरी 'याद' है , मुझे अब 'याद' आया !
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अब और कितना बदलूँ खुद को
तेरे हिसाब से.... जीने के लिए....
ऐ ज़िन्दगी अब तो बाकी रहने दे
थोड़ा सा " मुझमें " मुझको....
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