(🙏 शारदा स्तुति 🙏)
हे माँ ज्ञानदा! ज्ञानोदिप्ति ज्ञानचक्षु ज्ञानवर्धकारी...
श्वेतांबरधारी, श्वेतहंसारूढ़ हे माँ वीणावादिनी!
नतमस्तक हूँ तेरे पावन पगपुष्प पर हे माँ वागीश्वरी!
ज्ञान बिना तिमिरमय भव माँ फैला दो ज्ञान उजियारी
विमल विद्या वीणावादक विमला का वैभव विश्व में चमत्कारी...
तुम्हारी कृपा जब होवे अज्ञानी ज्ञानी बन जावे माँ वीणावादिनी।
भव्यता भव्या रूप भविक भवमोचन भवभूति युक्त माँ भारती
विद्याविहीन हूँ माँ विद्यावान बना दो माँ सरस्वती
वाणी में विराजो माँ जीवन संगीतमय कर दो हे वाग्देवी
नमन करती (शैली) तुम्हें माँ ज्ञान की प्रेम पावन पय पावस करों माँ वीणापाणि।-
बनाई नाव उसने तो खिवैया भी वो भेजेगा।
तेरी आशा का कलयुग में कन्हिया भी वो भेजेगा।
न हो मायूस मेरी बिटिया ,तू सुन ले बात ये मेरी ...
सजाई उसने है राखी तो भइया भी वो भेजेगा।।-
वस्ल की रात लिखती,हिज़्र का इज़हार
लिखती हूँ।
लिखी मैंने मोहब्बत है,हाँ मैं तो प्यार
लिखती हूँ।
कलम नन्ही हूँ तो हल्के में मत लेना मुझे क्योंकि...
कृष्ण की राधिका हूँ मैं तो बस श्रृंगार
लिखती हूँ।।
✍️राधा_राठौर♂-
स्याही से पन्नों पे
ज़िन्दगी को कुछ इस तरह सहेजते हैं
टूटी हुई बिखरी हुई उलझी हुई यादों को
जोड़ के सुलझा के रचना में लपेटते हैं
Syahi se panno pe Lmha lmha sametate hai
Zindagi ko kuch is tarah sahejte hain
Tuti hui bikhri hui uljhi hui yadon ko
Jod ke suljha ke rachna me lapetate hai-
सुंदर - सरल स्वभाव रखो।
अभिमान का अभाव रखो।
उतर जाओ सभी के दिल में,
तुम ऐसा अपना प्रभाव रखो।-
मेरे कान्हा बड़े लाजवाब हो तुम।
हर सवालों का मेरे जवाब हो तुम।
तुमसे ही तो हूँ मैं निखरती सदा,
मेरे लिए तो आफ़ताब हो तुम।-
बीतते साल की छुट्टियों में फ़साना कोई नया लिखूंगा
कुछ अजनबी बच्चों के बीच किताबें और कलम रखूंगा
नई कहानियां उग रही है नन्ही शाखों में हर कहीं
हमें मौत में भी ज़िंदा रखे, कुछ ऐसे किरदार लिखूंगा-
जिन्दगी की तस्वीर मुकम्मल कर रहा हूँ
तकदीर से नहीं मैं तदबीर से उभर रहा हूँ
दिल जितना चाहे कि तुम कराे बुराई मेरी
करके दर किनार सबकाे मैं निखर रहा हूँ-
जितना मरहम लगता है, जख़्म गहरा हो जाता है,
क्यूँ मेरी दुहाई के वक़्त, ख़ुदा बहरा हो जाता है?
होता नहीं भरोसा मुझे, अब ख़ुद पर भी ऐ सनम,
जब भी देखती हूँ आईना, तेरा चेहरा हो जाता है !-