अब मोहब्बत की झूठी कसमो से मुक्त हूं ,
तभी तो खुद की सोच में लुप्त हूं ,-
कई भावनाओं का एकमात्र सहारा आँसू होते है,
वो मुक्त होते है किसी के साथ से, सुनने से, और समझने से,
वो बहते है और आपको मुक्त कर देते है ।-
नि:शुल्क तो है लेकिन मुफ्त नहीं,
आज़ाद तो हैं लेकिन मुक्त नहीं।
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पंछी पिंजरे से
स्त्री चारदीवारी से
और
कविता बंद डायरी से
होना चाहती है मुक्त।-
आपको पढ़ने में अजीब लगेगा पर नहीं असत्य है
!! राम नाम सत्य है !!-
सुनो ना!
मैं और तुम मिलकर
उलझनें सुलझा लेते हैं
ग़लतफ़हमी की दीवार
दोनों तरफ से गिरा देते हैं
देखो ना!
ये दुनिया तो
घर फूँक ,मज़ा लेती है
एक की दो,दो की चार
लगा के फैला देती है
चलो ना !
एक कदम हम ही बढ़ा
अपना घर बचा लेते हैं
अहम को घटा कर
प्रेम को बढ़ा लेते हैं....-
कविता
नहीं लाँघती लक्ष्मण रेखा
पर फिर भी हो जाता है
उसका अपहरण
शायद कविता ही
मुक्त रहना चाहती है
नहीं चाहती अपने पैरों में
बेड़ियाँ कवि के नाम की।-
हम मुक्त होना चाहते हैं
और फिर बंध जाते हैं किसी बंधन में
यही जीवन है!
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तोड़ दो सारे मंदिर
सारे मस्जिद तोड़ दो
मुक्त करो मुझे बन्धन से
मुझको खुला छोड़ दो
करता जो इंसान से नफ़रत
कहलाये न वो भक्त मेरा
जब भी रक्त तुम बहाते
बहने लगता रक्त मेरा
हाथ किसी पर उठाने से पहले
सर मेरा ही फोड़ दो
चाहता हूँ मैं साँस लेना
मुझको खुला छोड़ दो-