मुँह क्यों छुपाते हो
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मुहँ क्यों छुपाते हो
नजरे ना मिलाते हो
मोहब्बत है दिल में
खुल कर क्यों ना बताते हो
यू छुप-छुप कर आहे क्यों भरते हो ।।-
किसे पता था,
दिखावे की दुनिया में लोग
यूँ मुँह छिपा के मिलेंगे।-
मेरी अहमियत को कभी तुमने समझा नहीँ।
अब शर्म से ये चेहरा छुपाने से क्या फायदा।
तुमने पूरी जिंदगी भर अंधेरों में रख्खा मुझे।
अब मज़ारों पर दीपक जलाने से क्या फायदा।-
मुह क्यो छुपाते हो जरा सामने आओ
अपने चेहरे से हया का नकाब उठाओ
बयान करो दर्द अपना,कहो दिल की बात
छुपाना भी खुद पर जुल्म है ,चुप होकर सहना भी
सामने डटकर जालिम दुनिया को दो जवाब-
मुंह क्यूं छुपाते हो,क्या हम से शर्माते हो,,
रातों के जुगनुओं से रोशनी चुराते हो,,
खामोशी से धीरे धीरे मोहब्बत कर रहे हो,,
मेरे पूछने पर तुम मुकर जाते हो,,
झुकी झुकी नज़रों से फिर हमे क्यू ताकते हो,,-
गल्तियों का है पुलिंदा,फिर भी समझे खुद को होशियार आदमी
जाने-अनजाने करता है जब कई बार भूल या गुनाह आदमी
सबसे क्यों मुँह छुपाता और नज़रें चुराता-फिरता है आदमी
कबूले अपनी भूल,माँगे जो माफी, सच में वो बड़ा है आदमी
सबक ले,न दोहराए बार-बार,तब बनता है समझदार आदमी
💕 Priya Omar 💕-
ढलती शाम मे और सतरंगे आसमान में,,
तुम गुजरते हो मेरे घर के आँगन सें,,
जानते हो चोखट पर बैठी हु मैं तेरे इंतज़ार में,,
तुम भी बेताब हो मुझसे नज़रे मिलाने में,,
और तुम मुंह क्यु छुपा लेते हो मेरे सामने आने सें,,-
मुसीबतों से क्यों डरते हो
तुम अकेले ही पीड़ा उठा रहे
ऐसा तुम क्यों समझते हो
तुम्हारा बुरा वक्त तुम्हें ही सिखाएगा
खुद पर विश्वास रखो ऐसे मुँह क्यों छुपाते हो-
खुदगर्ज़ इंसान,अब मुँह क्यों छुपाते फिरते हो,
अच्छाई का मुखौटा पहन कर,लोभ,मोह,ईर्ष्या में फंसकर,
इंसानियत को ताक पर रख,जाने कितने करते हो गुनाह,
पर समय बड़ा बलवान, हर कदम देता है चेतावनी,देना है तुझे भी कर्मों का हिसाब,मनमानियों पर अब लगा विराम।।
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