कई महारथियों का साहस, जिसके आगे शून्य था
उस महाभारत युद्ध में "तू एक वीर अनन्य था
मृत्यु निकट, स्थिति विकट यह जानकर भी वीर हे !
संकोच के बिन चल पड़ा, उस युद्ध को तू धन्य था
उस महाभारत में तू एक वीर अनन्य था। एक अकेला ही तू, उन वीरों हजारों से लड़ा,
ए वीर तू छोटा सही, साहस था सारों से बड़ा
प्राण दे करके तू अपने,हो सदा को अमर गया
हे व्यूह भेदनहार तू हर हृदय गर्व से भर गया
पितु हृदय का हर्ष तू माता का जीवन आधार था
जिसके लिए सर्वस्त तू उस उत्तरा का श्रृंगार था
उस परिक्षित का पिता जिसने यह जग देखान था
सब जानकर भी चल पड़ा उस भाग्य का लेखा न था
माता पिता गुरु धन्य तेरे कुल तेरा वह धन्य था
उस महाभारत युद्ध में अभिमन्यू तू अनन्य था |-
***** द्रोपदी *****
"द्रोपदी, इक चीरहरण ही तो नहीं, .....बस ;
दंश के हवन से निकला अधजला उछ्वास है;
दंभ से कर्ण को जो सूतपूत्र कह सहज ठुकराता,
धर्मपूर्वक पांच हिस्सों में बराबर बंटा नारीत्व है जो;
अंधों को अंधा बताता निर्लज्ज सा परिहास है वो।
छद्म मर्यादाओं को आपस में भिड़ाता क्रूरतम प्रयास है;
द्रोपदी, समर को महाभारत करता 'अर्पित' नियति का प्रहार है।"-
श्रीकृष्ण बोले,
है महारथी रणभूमि में
है उनके पास अद्भुत सामर्थ!
तुम भयभीत तो नहीं हो पुत्र?
यदि नियति कर दे तुम्हें परास्त!
वीर अभिमन्यु कहे,
महारथी अर्जुन का पुत्र हु मै
चीर कर जाता हु हर भयंकर तूफान।
अब इस ऐतिहसिक महायुद्ध में
मै बनूँगा सबसे श्रेष्ठ, सबसे महान।।-
गुरु पुत्र का प्रतिशोध
(महाभारत काव्य श्रृंखला का तीसरा खंड)
(कविता अनुशीर्षक में पढ़ें)-
चुनाव किया
गांधारी ने
समानुभूती का
दिया प्रमाण
स्त्रीत्व का
किंतु
एक वांछित
बदलाव का
चयन कर
नेत्र बन जाना
भी तो एक
विकल्प था
शायद
यूं सखा बन
जाना नामंजूर
था उसे
-
उत्तरा का प्रश्न।
बलिवेदी पर मेरे प्राणप्रिय न्यौछावर,
मेरे जीवन का अब क्या अर्थ, परमेश्वर?
(कविता अनुशीर्षक में)
-
वो "सैरंध्री"
अक्षत,चंदन,रोली,दर्पण,
कुलवधु जगजननी पावन,
केवल एक वचन की खातिर ,
भेंट चढ़ गई मर्यादा की,
फिर भी कहलाई कुलघातन।।
तेरह वर्ष वनवासा झेला,
द्रुपद लाडली ,ये भाग्य का खेला,
कृष्ण ने अपना सखा बनाया,
फिर भी कर्म बिगड़ता पाया,
राजदुलारी, सुकुमारी,सुनयना,
स्वाभिमान सा प्रिय कुछ भी ना,
तुम ही कुल की शक्ति बनी,
तुम ही सत्य ,सखि,तुम प्रियतमा......
-
कहते है गांडीव धारी अर्जुन हूँ
जिसके गांडीव में है बज्र का टंकार
उसी बज्र धारी का अंश हूँ ।।
महाराज पांडु तथा माता कुंती के पुत्र हूँ
जो अपनी मां की आंसू को
तिलक लगाए मैं वो संतान हूँ ।।
जिसके ढाल के लिए मुझे जन्मा
उसके दिखाए हुए मार्ग में चलूं
ऐसा मुझे संस्कार मिला ।।
वो द्रोण थे जिसने खोजने चले अपने शिष्य
पहली भेंट में मान लिया उन्हें अपना आचार्य।।
महाराज पांडु थे जिसने
धनुर्विद्या का मार्ग दिखाई
और आचार्य द्रोण के वजय से
कहलाया आज मैं धनुर्धारी।।
स्वागत करने चले जहां हस्तिनापुर के जनसभा
वहीं पे दबाया गया मुझे पत्थरों के नीचे।।
गुरु के विद्या था जो बना लिया अपने ऊपर छत्र
देख के बोली जनसभा महाधनुर्धारी है अर्जुन।।-
यार एक बात तो है,
लॉकडाउन में रामायण, mahabharat,राधाकृष्ण,लव कुश,ये सब देख देख कर गुणों में बदलाव आ गया है ,
अब मम्मी को माता जी कहने की आदत हो गई है ।
आज सुबह सुबह मम्मी गुस्से से अपुन को उठा रही थी।
अतः मैंने कहा=
इतना क्रोध ठीक नहीं देवी जी,अतः क्रोध पर नियंत्रण रखिए ।
तब तक पापा आए........पिताश्री आप मध्य में ना पधारिए.....मामला गंभीर है ।
😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂-