✨Appi one kind अर्पित✨   (#Appionekind)
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Joined 15 July 2019


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Joined 15 July 2019

“किसके लिए ‘अर्पित’ छोड़ूँ नक़्श मैं यहाँ;

अब कोई नहीं इस शहर में समझे मेरी ज़बाँ।”

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“‘अर्पित’ चश्म-ए-आरज़ू पे नज़र जो पड़ी;

तिश्ना को देख कर मेरी दरिया सहम गया।”

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“‘अर्पित’ यूँ तो हम भी ख़ुश-गुफ़्तार थे बड़े;

मुस्कान उसके लब की से लेकिन सदा हारे।”

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“चेहरा कोई भी चाहे ना मुझसा यहाँ दिखना;

साये से भी ’अर्पित’ शबाहत नहीं मेरी।”

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“रहबर बनाया माह को ‘अर्पित’ ब-उम्मीद;

मंज़िल न मिली उसको और ना ही मिली मुझे।”

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“‘अर्पित’ ख़ुद को भी ना कहीं भूल मैं जाऊँ;

अब इतनी भी शिद्दत से नहीं याद आ मुझे।”

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“‘अर्पित’ खड़े बिकने को हैं सब क़तार में;

क्या है जो दस्तियाब नहीं इस बज़ार में।”

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"आहट किसी के पाँव की आई न सुब्ह तक;

'अर्पित' हम दिल की धड़कनों के निगहबान ही रहे ।"

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“‘अर्पित’ गुलसितां है ये महफ़ूज़ ख़िज़ाँ से;

हर बर्ग-ए-गुल पे नाम लिख छोड़ा है जो तिरा।”

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“‘अर्पित’ इतनी कम नहीं क़ीमत यहाँ मिरी;

कुछ कीमिया भी है मिला इस मिट्टी में मिरी।”

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