【अनुशीर्षक में पूरी रचना】
-
मन को भाया तुम्हारा वह रूप विकराल है
नव दिवस है दृश्य को ठहरा स्वयं काल है
विवाह उत्सव में सभी है पधारे...
वधू स्वयं महाकाली और वर महाकाल है 🙏-
श्यामवर्णी, अत्यंत क्रोध,रोष समावेश अद्भुत अहंकारी हूँ,
आदि शक्ति रूपिणी,भक्तों की पालनहारिणी,असुरों की संहारिणी हूँ,,
सृजन कर सृष्टि रचयिता शिव अर्धांगिनी पार्वती उद्भव रणचंडी काली हूँ,
हाँ! काल का स्वरूप हूँ मैं, जगदम्बे काली हूँ मैं, हाँ! महाकाली हूँ।।-
श्यामवर्णी तू रौद्र राजसी विख्यात नामें महाकाली।
परम प्रतापी मूरत तेरी,वंदन करे कपालमौली।
विशाल त्रिनेत्र तेरे पद्मसमान छलकाए प्रलयाग्नि
असुर-रक्त की सदा पिपासु जिव्हा तेरी महिषासुरमर्दिनि।
तांडव करती तेरी पायल की खनक से थरथर कांप उठे धरती।
भावोन्माद मे नाचे तेरे भक्त स्मरण कर तेरी प्रीति।
त्रिलोक का तेज समाए त्रिशूल, खङ्ग कालसर्प की जिव्हा जैसे।
भागे दुष्प्रवृत्तियां रण छोडकर प्राण रक्षने कोई जीव वैसे।
सूक्ष्म-स्थूल मे वास है तेरा,शांभवी तू जगद्व्यापिनी।
असुरों की संहारिणी मां तू भक्तों की पालनहारिणी।-
भक्त हूँ मैं महाकाली की शक्ति की...
क्यों परवाह करूँ फिर दुश्मन की हस्ती की...
जय महाकाली माँ🙏-
ना कामना है प्रतिष्ठा की
ना ऐश्वर्य और
ना ही दीर्घायु की,
बाबा बस आपका दिया हुआ
राम नाम रूपी प्रसाद
नित इस मूर्ख के मुह पर रहे
यही एकमात्र कामना है
विनती है ।।-
अयीरुद्राणीकलातीतकालीमहातीत दारुतप्राणहते।
शिखरशिरोमणीअग्निज्वालामयी शिवअंशपादगते।।-
नारी🖤
आज फिर एक नारी की इज्जत लुटाई गई
मिट्टी में कंकड़ की तरह फिर उसे मिलाया गया।
कर कर के बर्दास्त आज उसकी सीमा टूटी है,आज फिर वो नारी लक्ष्मी बाई की तरह रूठी है ।
हो गई आज हद पार इन पुरूषों की,
आज फिर कोई अबला उनको सबक सिखाने आईं है।
कहते है सब लाज ,शर्म और हया होता है नारी का गहना,
पर आज अपने सारे गहने उतार कर उन पापियों को वो सजा देने आई है।
आज रूठी है वो नारी जिसे सबने कभी कमजोर और लाचार कह कर बुलाया है।
आज वो नारी लक्ष्मी बाई, मदर टेरेसा,और स्वय महाकाली बन कर आई है।-