तुलसी पावस के समय, धरी कोकिलन मौन।
अब तो दादुर बोलिहं, हमें पूछिह कौन।।
भावार्थ: बारिश के मौसम में मेंढकों के टर्राने की आवाज इतनी अधिक हो जाती है कि कोयल की मीठी बोली उस शोर में दब जाती है। इसलिए इस मौसम में कोयल मौन धारण कर लेती है। तुसलीदास जी समझाना चाहते हैं कि जब मेंढक रूपी धूर्त व कपटी लोगों का बोलबाला हो जाता है, तब समझदार व्यक्ति चुप ही रहना पसंद करता है।
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