तुलसी पावस के समय, धरी कोकिलन मौन।
अब तो दादुर बोलिहं, हमें पूछिह कौन।।
भावार्थ: बारिश के मौसम में मेंढकों के टर्राने की आवाज इतनी अधिक हो जाती है कि कोयल की मीठी बोली उस शोर में दब जाती है। इसलिए इस मौसम में कोयल मौन धारण कर लेती है। तुसलीदास जी समझाना चाहते हैं कि जब मेंढक रूपी धूर्त व कपटी लोगों का बोलबाला हो जाता है, तब समझदार व्यक्ति चुप ही रहना पसंद करता है।-
अपेक्षाएं जहां से समाप्त होती हैं,
आनंद बस वहीं से आरंभ होता है...-
भीड़ अर्थी की बता देगी,
हमारी हस्ती क्या है,
अब अपने मुंह से क्या कहें,
कितने मशहूर हैं हम।।-
अन्तो नास्ति पिपासायाः सन्तोषः परमं सुखम् । ~महाभारत
तृष्णा अनंत है.. और संतोष परम् सुख है !
जय श्री कृष्ण 🙏-
जतन बहुत सुख के किये.. दुख को कीओ न कोइ ॥
कहु नानक सुनि रे मना.. हरि भावै सो होइ ॥-
खिलने की आस लिए,
हम बचपन जी गए।
सामना अब काली घटाओं से था,
जाने कैसे कड़वे घूट पी गए।।-
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसार सारं भुजगेन्द्रहारम
सदा वसन्तं हृदयारविन्दे भवन भवानीसहितं नमामि ..
अर्थात:
यह जो कपूर की तरह निर्मल एवम श्वेत हैं और करुणा एवम दया का रूप हैं सारा संसार इनमे ही निहित हैं जिसने सर्प को हार की तरह धारण किया हैं जो संसार के प्रत्येक कोने में मौजूद हैं जिनके ह्रदय में माँ भवानी का वास हैं ऐसे भगवान् शिव और माँ पार्वती को मेरा नमन है।
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*भगवान ने सभी को धनुष के आकार के होंठ दिये है मगर इनसे शब्दों के बाण ऐसे छोड़िये जो सामने वाले के दिल को छू जाये ना की दिल को छेद जाए।*
🙏🏻सुप्रभात🙏🏻-
समाजशास्त्र में दो नई खोज :
जिसका कोई नहीं होता, उसका मोबाइल📱 होता है और जिसके पास मोबाइल है, वो किसी का नहीं होता। ❓
समाजशास्त्र विभाग
खाली मन विश्वविद्यालय के द्वारा जनहित में जारी😆-
कोई वैद्य बताओ यारो... जो घाव दिल के भी भर जाएं...
हमें अपनों ने तोड़ा कुछ इस तरह, कि दुश्मन भी तरस कर जाए...-