काल हूं, महाकाल भी मैं हूं,
करम धरम का ढाल भी मैं हूं।
कांपे मेरे नाम से जल थल,
विश्व हूं मैं, ब्रह्माण्ड भी मैं हूं।
रौद्र रूप विकराल मैं हूं,
मोक्ष मार्ग का द्वार भी मैं हूं।
भूतनाथ, शमशान भी मैं हूं,
देह में बसा तेरे, प्रान भी मैं हूं।
भोला मैं, विशाल भी मैं हूं,
रक्षक हूं तो संहार भी मैं हूं।
रक्त हूं मैं, निराकार मैं हूं,
देवाधी देव महादेव भी मैं हूं।
विष हूं मैं, विश्वनाथ भी मैं हूं,
सरल हूं मैं और जटिल भी मैं हूं।
शंकर, शंभू , शिवा शिवाय,
नाम अनंत दुख पार लगाए।
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वो ना परे हैं किसी अनजान से
मनोभाव मुख से भोले हैं परे कम नहीं किसी महान से
वो हैं विश्वास की नईया और पतवार सत्कर्म का
अहंकारी भी निर्मल होते इतना प्रेम झलकता उनकी आँखों से
जिन्हें देखने भर को आँखों की नहीं ज़रूरत होती
बसते हैं वो जागृत चेतना में जो न मानो तो कम नहीं किसी पाषाण से
वो हर मुसकान में वास करते उनकी छवि बूँद बूँद अश्रु में
उनके आभास भर से जीवन सफल है बस सत्कर्म करो हर्सोल्लास से
मिलते हैं वो सभी से परीक्षा लेते हैं वो सभी के
हर जीव निर्जीव में हैं वो जो सफल होते वो कम नहीं किसी शिवांश से
वो अघोर विरक्त हैं और महाकाल उनका स्वरूप
बड़ा दिल है हर दशा में मुस्कुराते वो मलंग हैं क्यूँकि परे हैं अपने हर मान अपमान से-
केश मेघ, जटाओं में गंगा जल है
निल कण्ठ, सर्प कुंदन व स्वर्ण रुद्र माला है
अश्रू अति पीड़ा दायक, मुस्कान तारणहार है
गुस्सा रौद्र रूप प्रलयकारी, आँखों में अपार प्रेम है
श्रृंगार है भस्म धारी, भोला उनका स्वरूप है
मनमोहक सबसे सुंदर, मेरे दिल मे बसे मेरे महादेव हैं
🙏 हर हर महादेव 🙏-
हे शशिशेखर! हे पिनाकी! महाकाल कण-कण वासी,
सकल चराचर के संहारक,जग तारक विरुपाक्षी।
हिरण्यरेता प्रजापति सदैव आपका ध्यान रहे
सबको आशीष ऐसा दीजै ,सब इच्छित परिणाम रहे।।-
कानों में कुण्डल , गले में नाग लपटे है ,,
मेरे महादेव स्वयं में ब्रह्माण्ड समेटे है ।।-
कैसे कह दूँ कि मेरी हर दुआ बेअसर हो गई...
मैं जब जब भी रोया मेरे महादेव को खबर हो गई ..|-
जो सत्य जीत के द्वार आएगा ,
शमशान उसी के गीत गाएगा।
जय श्री महाकाल
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मुझे रंगों का कोई मोह नहीं,
अब 'भस्म' ही मेरा श्रृंगार है।
ना छूने की तुम गलती करना,
अब बदन यह मेरा अंगार है।
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