मैं हरिवंशराय की मधुशाला🍷 सी
और तुम एक मीठा नशा।-
"चंदा-किसी के प्यार में"
चंदा तेरा रूप तो, कुछ यूँ निराला लगता है।
तूँ तो किसी के प्यार में, मतवाला लगता है।
उनकी खुशी खातिर तुमनें, दिल में दबा रखे हैं कुछ जज्बात
नशे में रहने लगे हो अब, पास में कोई मधुशाला लगता है।
खामोशी उनकी तकलीफ देती है, फिर भी इश्क कर रहे हो
हर रात रूबरू होते हो उनसे, तूँ बड़ा हिम्मतवाला लगता है।
शायद उन्हें अभी खबर नहीं है, तुम्हारे बेपनाह इश्क की
बंद हैं दरवाजे तुम्हारे लिये, दिल पे लगा ताला लगता है।
कोई और ना देखे उन्हें, ये चिंता तुमको बेकरार करती है
पहरा उनके छत पर रोज़, तूँ उनका रखवाला लगता है।
बड़ी मुद्दत से मिलते हैं जमाने में, यूँ सच्चा इश्क करने वाले
हर शख़्स आशिक यहाँ, इश्क का कोई पाठशाला लगता है।-
विश्व तुम्हारे विषमय जीवन इतने सालों पहले ही भाँप
में ला पाएगी हाला मद का ये रूप दिखा डाला
यदि थोड़ी-सी भी यह जिसके रहे भाव जैसे, वैसे
मेरी मदमाती साकी बाला पढ़ता ये साकी बाला
शून्य तुम्हारी घड़ियाँ कुछ भी सभी परिस्थिति प्याले की
यदि यह गुंजित कर पाई कल्पित पद्यों में वर्णित कर
जन्म सफल समझेगी जग भावों को सुशब्दित कर, क्या
में अपना मेरी मधुशाला।। खूब लिखी ये मधुशाला।।
-स्व० श्री हरिवंशराय बच्चन-
होते गर डूबे प्यारे कृष्ण नाम की हाला में,
पड़ती नहीं जरूरत जाने की मधुशाला में।-
|| विहान की मधुशाला ||
अपनो की तलाश में फिर, निकल पड़ा वो पीने वाला।
सालों से खामोश बैठी, इंतजार कर रही वो मधुशाला।
यारों की गलियो से देखो, रोज निकलती एक ज्वाला।
अपने ही तो दुश्मन बन गए, सुनसान पड़ी है मधुशाला।टकराते थे साथ कभी, आज खाली पड़ा है वो प्याला।
अपनो से लड़वाता मजहब मेरा, आग बुझाती मधुशाला।
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अचेतन मन है समझ रहा,
मेरे शब्दों की माला को,
चेतन मन है औढ़ रहा,
तर्क - कुतर्क दुशाला को,
तलब लगी ऐ साकी तुझको,
और दोष दिया मधुशाला को,
आत्म मंथन कर, पा ले अमृत,
पर बता, कौन पियेगा हाला को.....-
जिंदगी क्या है मालूम हो तो बतलाना हमे
गम कम होता हो तो थोड़ी सी पिलाना हमे-
बने पुजारी प्रेमी साक़ी, गंगाजल पावन हाला,
रहे फेरता अविरत गति से मधु के प्यालों की माला
'और लिये जा, और पीये जा', इसी मंत्र का जाप करे
मैं शिव की प्रतिमा बन बैठूं, मंदिर हो यह मधुशाला।।-