थोड़ा कम थका ऐ ज़िंदगी
मजबूर हूँ, मजदूर नहीं!-
सहूलियतों की कमी में भी खुश है कोई
और समृद्ध को बहानो से ही फुर्सत नहीं ।-
दौलत की चमक ये तेरी बीनाई न लूटे
गुज़रे जो मुद्दई कोई तो दरगुज़र न हो।-
देश जिसके हाथ सँवरता है,
वही मजबूर मरता फिरता है।
मेरा भारत पल-पल मरता है।
मेरा भारत पल-पल मरता है।
मेरा सपनों में खो जाना
मखमल बिस्तर में सो जाना
मुझे आज बहुत अखरता है।
मेरा भारत पल-पल मरता है।
मेरा खा लेना बढि़या खाना
उनका भूखे ही सो जाना
गले ग्रास नहीं उतरता है।
मेरा भारत पल-पल मरता है।
उनका सड़कों पर पड़ जाना
लावारिस लाशें बढ़ जाना
बैचेनी दिल में भरता है।
मेरा भारत पल-पल मरता है।-
अपने घर में लेटे-लेटे तुम 'हिन्दू-मुस्लिम' रो लेना!
मर जाने दो मज़दूर सड़क पे उनसे तुमको क्या लेना?-
इतने तो मजबूर नहीं तुम मगर
जो रहते हो इतने गुमसुम मगर
ज़िन्दगी बहुत सुरीली है प्यारे
कभी दिल से सुनो ये धुन अगर
एक सुकून मिलेगा तुम्हें हमेशा
पलकों की ख़ुशियाँ चुन अगर
तरक्की बस कदम चूमेगी तुम्हारे
देखो कभी ख़्वाबों को बुन अगर
सच कहते हैं सब लोग "आरिफ़"
मिलकर चलते हैं मैं और तुम अगर
"कोरा काग़ज़" भी भर जाएगा अब
चलो कलम की आवाज़ सुन अगर-
कुछ लोग अपने पास बुलाकर फिर दूर कर देते है।
न चाहते हुए भी मुझे लिखने को मजबूर कर देते है।-
जब तुमने जाने का फैसला कर लिया था
तब हमने तुम्हे रोकने की एक बार भी
कोशिश ना की।।।
हमे मालूम था तुम कितने मजबूर हो
मगर मगरूर नही हो ।।।
तुम्हारा मासूम सा चेहरा जाते हुए
अपने दर्द की दास्ताँ बयान कर गया
जैसे चेहरे पे दर्द उतर गया
इसलिए हमने कोशिश ना की।।।
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