थोड़ा कम थका ऐ ज़िंदगी
मजबूर हूँ, मजदूर नहीं!-
मजदूर है मजदूर हैं
हम तो ठहरे मजबूर हैं
आँसूओ से प्यास बुझाकर
ना जाने चले रहे किस ओर हैं
रक्त की बूंद से जिसको सीचा
नजरो से उसने किया अब दूर है
दर दर की ठोकरें मिलती
ना जाने वक़्त को क्या मंजूर हैं
पेट की आग तन मन जलाती
नैनो से छलकता नूर हैं
पल भर की आँधी में सबकुछ बिखरा
वक़्त की दर पे खड़ा फकीर हैं
दुख की सेज पे राते गुजरती
मुखौटो ने बना दिया मजबूर हैं
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दुसरो की दर्द में रोने वाले अपनो की आह कब सुनोगे।
हमें नींद से जगाने वाले अपनी आंख कब खोलोगे।
हज़ारो कहानियां मजलूमों की बिखरी पड़ी है इन सड़कों पे
आखरी इम्तेहान है हमारी बात कब छेड़ोगे ।
पलटकर आऊंगा जब कभी अगर उन्ही गलियों में
देखूंगा तुम्हे भी ऐ तख्त-ऐ-नशीं अपने कदमों की निशाँ कबतक छुपा के चलोगे ।
मोहब्बत हमारी इस मुल्क से मत पूछो हमसे ऐ हमवतन
दिखा दूंगा अपनी रक्त की बूंदे इन माटी पे
अगर जब कभी भी हमारी तरह तन्हा हमारे साथ चलोगे ।-
■इनकी मदद करे , मजबूर ना करे🙏
घर में रहने दें , घर से दूर ना करें😫🙏
एक सपना लिए आंखो में 🇮🇳कि अब घर पहुचूगां🇮🇳
इसलिए मिलो-मिल , पैदल चलता जाता है
थक जाता है राहों में😑 , तो पटरी पे सो जाता है
(देख) खुदा का मर्ज भी😒
उन लाचारों को भी ना छोडा़😫
दर्द से जिनका रिस्ता था 'साहब'😢
उसे और दर्द में झोंक दिया😫
रात के अंधेरो में , ये वेखौफ कुचला जाता है😢
सत्ता , पक्ष - विपक्ष , बस आह भरा करते है😎
क्या होगा इससे ??
अनमोल जीवन में बेमोल सा शब्द है ऐ😢
🇮🇳देख लिया ऐ सम्पूर्ण जमाना
System तेरी होड़😒
अब तू आंसू बहाए😫 या आह भरें
इसका अब कोई ★रोल★ नहीं😒😫🙏-
देश जिसके हाथ सँवरता है,
वही मजबूर मरता फिरता है।
मेरा भारत पल-पल मरता है।
मेरा भारत पल-पल मरता है।
मेरा सपनों में खो जाना
मखमल बिस्तर में सो जाना
मुझे आज बहुत अखरता है।
मेरा भारत पल-पल मरता है।
मेरा खा लेना बढि़या खाना
उनका भूखे ही सो जाना
गले ग्रास नहीं उतरता है।
मेरा भारत पल-पल मरता है।
उनका सड़कों पर पड़ जाना
लावारिस लाशें बढ़ जाना
बैचेनी दिल में भरता है।
मेरा भारत पल-पल मरता है।-
यह महान दृश्य है,
चल रहा मनुष्य है,
अश्रु स्वेद रक्त से,
लथपथ लथपथ लथपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।-
हम बहा दिये अपने, हिस्से का पसीना सब ।
कि बस अपने मुल्क को, अपना सा बनाने में ।।-