शनैः शनैः अद्भुत दृश्य की छटा बिखेरती एक नैसर्गिक गोधूलि बेला जीवन शक्ति का परिचय देती यह अद्भुत बेला संपूर्णानंद कोआगाज करती यह गोधूलि बेला **************************** इस गोधूलि बेला के अवसर पर भिन्न-भिन्न नजारें पेश करती प्रकृति ******************** अद्भुत नजारों का चित्रण करता प्रकृति का हर एक कण जो देता मन मस्तिष्क पटल पर सृजनात्मकता को निमंत्रण ******************************* क्षितिज की ओर कदम बढ़ाता भास्कर एक नया संदेश देता एक ढलते शांत स्वरूप में जीवन सत्य को उजागर करता ****************************** नील गगन में दूसरी ओर प्रकाशित धवल तुषार रूपी चंद्रमा अपने बढ़ते प्रभाव की महिमा को उद्घाटित करता एक भिन्न प्रकाश का महत्व प्रकटित करता ******************************** ऐसा प्रतीत होता कि जैसे प्रकृति अपना एक रूप समेट कर नए रूप को धारण करके एक अकाट्य जीवन दर्शन को प्रस्तुत करती । *†*******************************
नाही ती आज या जगात तरीही, दरवळते ती आज ही माझ्या घरात, अन अंगणातील कोपर्या कोपर्यात. कुठेही मी गेलो तरी तिच अस्तित्व, सतत सभोवताली मला जाणवत. (पुर्ण कविता मथळ्यामध्ये वाचा)
मंद मंद बयार बारिश की फुहार पतंग सी उड़ान खुला आसमान कलियों का खिलना अपनों से मिलना माँ का दुलार अपनों का प्यार हरे भरे उपवन रंग बिरंगे सुमन चिड़ियों की चहक सोंधी सोंधी महक
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