अंधेरी रात में भी धरा पर कहीं अंधेरा न रह जाये। अपने-अपने घर में एक-एक दीप जलाये रखना।। अंधेरे में कोई भटके न अपने मंजिल की डगर। मन में अपने एक उम्मीद की रौशनी जलाये रखना।।
अपनों के संग सा है ये अलग संसार। हम सबका काव्य है एक परिवार।। आपका आशिर्वाद और प्यार। प्रोत्साहन के रूप में है साकार।। बड़े, सम्मानीय और पूज्य है आप। दूर हो कर भी हैं हम सबके साथ।। आपको हृदय से मेरा बारंबार प्रणाम। काव्य के द्वारा आपको देते हैं सम्मान।।
जब से लगा अाषाढ वर्षा हुई शुरू आ गयी बाढ पोखर और खेत भर गये लबालब पानी से कजरी गाते लोग लगाते धान और लुभाते वाणी से बारिश हुई घनघोर शोर मचा चारों ओर लो अब आ गया आषाढ खेत और तालाब हुए एक देख इसे सब हुए इकट्ठे एकाएक कुछ चिन्ता,कुछ लिये हर्ष वर्षा ने अब है दिया दरस बीते हों जैसे कई बरस बिन पानी के बाढ देख सब हो गये हर्षित पानी से