कितने आँसू हैं जो लड़के पी गए
कितनी बातें हैं जो लड़कियाँ बोली नहीं
"आँसू लड़कियों की भाषा है और बोली लड़कों की"
ये कहकर
कितने पुरुषों के आँसू स्त्रियों की आँखों से बहाए गए
कितनी बातें स्त्रियों की पुरुषों के ज़ुबाँ से सुनी गई
बाँधा गया है सदियों से दोनों को भाषायों में
अगर बोली स्त्री की भाषा नहीं थी
तो उसकी ज़ुबाँ का होना कुदरत का मज़ाक रहा होगा
अगर आँसू की भाषा केवल स्त्री जानती है
तो पुरुषों का आँखों के साथ जन्म लेना एक संयोग मात्र
.
हमको पढ़ाया गया केवल शरीर का विज्ञान
भाषा विज्ञान जला दिया गया
फिर बचे अवशेषों ने पोंछ दिये आँसू और काट दी ज़ुबाँ!-
मातृभाषा को मित्रभाषा बनाएँ
मात्रभाषा बनाकर मृतभाषा न बनाएँ-
तू है मीठी बोली और मैं हूँ कड़वी बात प्रिये
मैं हूँ अगर आठों पहर तो तू है दिन-रात प्रिये
तुझ बिन सब सूना-सूना लगता है मुझको अब
अगर कुछ ना बोलूं तो अच्छे नहीं हालात प्रिये
जब भी कहीं देखा तुझे अपने करीब पाया मैंने
दिल है मेरा अकेला कर ले कहीं मुलाक़ात प्रिये
तेरी मुस्कान को देखकर ज़िन्दा हूँ तो क्या हुआ
तुझ ही में मिली मुझे सबसे अच्छी सौगात प्रिये
कभी पत्थर दिल पाओ मुझे तो रुस्वा ना होना
माँफ़ कर देना मुझे जो समझे नहीं जज़्बात प्रिये
तुझे देख ही दिन हो मेरा और तुझे देख ही रात
तू है मेरे नैनों की भाषा और मैं हूँ तेरा गीत प्रिये
दिल तोड़कर जाना फ़ितरत नहीं "आरिफ़" की
इश़्क दिल में होता है इसकी नहीं मालूमात प्रिय
ज़िन्दगी बस "कोरा काग़ज़" रह जायेगी तुम बिन
तुझको लिखना किसी कलम की नहीं औक़ात प्रिये-
सत्य कथन
चार्ल्स नेपियर ने लिखा है- ‘अंग्रेजी नये युग का जनेऊ है, जिसके बिना आदमी का कोई आदर नहीं होता। जब तक भारतीय इस मोह से न छूटेंगे, तब तक हिन्दी का पूर्ण विकास नहीं हो सकेगा।’
📓-राष्ट्रभाषा और राष्ट्रीय एकता1958
✍🏻-रामधारी सिंह "दिनकर"-
प्रेम एक भाषा
प्रेम एक भाषा!
नीव जिसका एहसास है।
एहसास गर सख्त है तुम्हारा!
तुम जमीं प्रेम पूरा आकाश है।-
"क्या तुम कोई विदेशी भाषा सीख रहे हो?"
"हाँ।"
"अरे वाह, कौन सी?"
"हिंदी..."-
"मौन" के "गर्भ" में "शब्दों" से कई ज्यादा
"भाषा" बची हुई होती है..!!!
:--स्तुति-