अच्छे हो, हाँ! तो अपने मन से रहो।
जिंदगी जीना है, तो बुरे बन के रहो।।-
मेरी कोई भी लेखनी
उन्हें कागज़ पर फैली महज़ एक स्याही नज़र आती है
सही कहते हैं लोग
अच्छों को हर चीज़ में अच्छाई
और बुरों को बुराई ही नज़र आती है-
दिन रात की बेचैनी है,
ये आठ पहर का रोना है
आसार बुरे हैं फुरकत में, मालूम नहीं क्या होना है-
सबसे "अच्छी कविता" वो होती है
जो सबसे "बुरे दिन" में पहचानी जाती है...!!
:--स्तुति-
जो भी दिन मेरे गुजरेंगे
वो दिन भी तेरे गुजरेंगे
मेरे दिनों में दिक्कतें होंगी
तेरे दिन बहुत बुरे गुजरेंगे
जिंदगी मजाक है कहने वाले
दिन तेरे भी पूरे के पूरे गुजरेंगे
गर निकले हैं तेरे घर की ओर से
शाम नहीं गुजरे तो सवेरे गुजरेंगे
बगैर किसी बात के जो लड़ते हैं RSA
लोग बेवजह उससे भी लड़े गुजरेंगे-
सोचा था ज़िन्दगी में मेरे तुम उस खुदा का करम है।
जाना है तेरी मोहब्बत पिछले जन्म का बुरा करम है।-
चंद लोग ही होते है बुरे "महबूब"
पर उंगलियां तो पूरे कौम पर उठाते है लोग-
इतने...
बुरे भी......
नहीं थे....
हम...........
जितने..........
इल्जाम............
लगाए.................
लोगों ने.................-
ना जाने क्या बुराई है मुझमें,
इतने दिलों जान से प्यार करता हूं ,
फिर भी लोग मुझे यूं तन्हा छोड़ जाते है ।-
जिंदिगी में बुरे वक़्त का भी होना जरूरी है
क्यो की बुरे वक़्त में ही अपने का पता चलता है-