दिल की तमाम उलझनों को खत्म कर गई
डर रहा था मैं बताने को दिल की बात उसे
कल खुद ही पूछ कर सवाल,खुद जवाब दे गई
कहने लगी तेरी आँखों से बात तेरे दिल की जान गई
पूछा जो मैंने कि क्या मेरे दिल में,
थमा कर तस्वीर अपनी, मुस्कुरा कर चली गई-
हमको अकेले यहां तक लाया गया,
हमको कुछ भी यहां न बताया गया।
जब हम पहुंचे मुहाने पे जलधार के,
हमको अब क्यूं संभलना सिखाया गया।-
थम चुका था वक्त मैं घड़ी देखता रहा।
और वो घड़ी के काटे पीछे करती रही।।
रख उंगलियों को होंठो पर मेरे,अपने।
वो सवाल सारी रात हमसे करती रही।।
सुबह न होने की ज़िद करता रहा मुझसे।
मैं जाने की वो रुक जाने की ज़िद करती रही।।
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कभी तो बिन कहे ही समझ लिया कीजिए
दिल का हाल मेरा,.
मोदी जी तो नहीं में कि कह दूं हर रविवार
अपने मन की बात..!-
मुझे पसंद है
तकिये के ऊपर नहीं तकिये के नीचे सोना मुझे पसंद है|कई बार बेवज़ह शांत रहना, अनजान राह पर किसी खाश के साथ चलना, कई बार खुद से बात करना मुझे पसंद हे|
पसंद हे उन आँखो से रुबरू होना जो बिन बोले हर बात बया कर जाती हे मेरी शायरी के दो अलफाजो के बीच इरशाद बया कर जाती हे मुझे पंसद है|
वो घबराहट वाला माहोल भी मुझे पंसद है|-
सजा देना भी कोई उनसे सीखे
देख कर ऐसे अनदेखा करती है
मानो जैसे कभी देखा ही नही-
" मुझे फ़र्क नहीं पड़ता ! "
इन शब्दों का अंत तो उसी वक़्त हो गया था,
जब तुमनें मुझसे एक सवाल किया था !
क्यों करती हो तुम ?-
" ये जो बिन बोले ही चल दिए हो तुम
ये भी तो सबकुछ बोल ही गया!
है ना ? "-
लफ़्ज़ों को इजाज़त कहाँ,,,
ख़ामोशियों को आज बात कर लेने दो...-