खूब चकाचौंध थी संसार में,,
भीड़ बहुत थी, इस मोहब्बत के बाज़ार में...
कौन अपना, कौन पराया,
सब धोखे से लगते हैं,,,
होड़ में निकलने के मौके से लगते हैं,,,
छुपी है प्रेम की फानूस यहाँ औज़ार में....
देख कर खुशी, अपनों की,
अपने ही हैं बेजार में...
थोड़ा ज़्यादा, मेरा तुम्हारा, अपना पराया,
बस यही हैं किससे बेकार में,,,
छुपाकर ख़ंज़र वो प्रेम का,
लगते हैं गले, रिश्तों की आड़ में,,
धुआं अच्छा है, आग लगे तो लगे,,,
देखो तमाशा, बजाओ ताली,
दुनिया जाए भाड़ में...
डूबती कश्ती में, खुद सुराख नहीं होता,
काठ का घरौंदा, कभी खुद से राख नहीं होता,
लाख मना लो, होली-दिवाली साथ में फिर भी,,
धुला हुआ हर नक़ाबी चेहरा, साफ नहीं होता...
©विक्की...🔥
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