आधुनिक कविता, आधुनिक बालाओं की तरह होती हैं।
इनसे भी नहीं सम्भलता अलंकारों का बोझ। बन्धनों में इन्हें घुटन होती है। सीधी बात नो बकवास वाला रवैया होता है इनका। इनके पैर ज्यादा देर तक एक जगह नहीं टिकते।-
मैं: यार, बाल इतने झड़ रहे हैं। कहीं ऐसा न हो कि सारे बाल झड़ जाएं और "बाला" मूवी के सीक्वेल में मेरी स्टोरी हो। 😣
दोस्त: चिंता कर कर। ऐसा दिन नहीं आएगा।
(मैंने चैन की सांस ली कि चलो बाल झड़ना बंद हो ही जायेगा)… बॉलीवुड के पास और भी बेहतर कहानियां हैं। वो तेरी इस कहानी को क्यों लेंगे!
मैं: 😓-
रूह मेरी अब कहा मेरी सुनती हैं बाला
ये तो बताए ऐसी इबादत कहाँ बनती हैं-
रात के अंधेरों में कभी चाँदनी तो नहीं देखी मैंने
दिन के उजालों में उनकी तस्वीर निहारी हैं मैंने-
बाला ...
एक उत्कृष्ट मूवी ,सभी देखे और मुस्कुराए ....
क्यों बाल की खाल निकाल रहे हो
ज्यादा सोचकर दिल दिमाग में ये बीमारी पाल रहें हो
देखो बाला कितनी मुसीबत झेल रहा था बालों की वजह से
तुम भी उसकी तरह अपनों को परेशानी में डाल रहें हो
सोचो तो कुछ भी फर्क नहीं पड़ता ज़माने को
मुस्कुराते रहो बाला की तरह टेंशन में खुद को ढाल रहें हो ...-
घेर के अंग अंग में ज्वाला
वेधित तन वेधे मन भाला
पोर-पोर अनुरागी माला
उन्मुक्त प्रेम की प्यासी बाला
लहर उच्छलित वेग प्रवाल
कपोल कल्पित रंगत लाल
कर जल तत्व देह प्रक्षाल
तंत्रिका तंत्र में वृहद जाल
आवेशित है देह तत्काल
यौवन स्फुटन है हाल
लाज विभा कोमल है गाल
केश राशि बिखरे हैं बाल
प्रखर नयन है प्रश्न कपाल
कहां है अब तक हृदय विशाल
मन में प्रीत की आस को पाल
कब तक है प्रतीक्षा काल..-
तु शैतान की खाला, में सिंह सा हिम्मत वाला
तु सखियो की बाला ,में फिर श्याम सा काला
ए मोती की माला,मगन जो में बासुरी वाला
कोई कहे लाला,वाह तेरा तो रूप निराला!!
-
यशोदा के लल्ला की लीला
मटकी टंगी माखन से भरी लल्ला को दिखी
दाऊ को संग लिए मय्या से मिले माखन को लिए
मय्या बोली बस कर लल्ला माखन हुआ खत्म
लल्ला ने लगाई दौर,मटकी ली खोज
मटकी टंगी फिर से मिली,दाऊ को बुलाए
मटकी पे कूद लगाएं मटकी गिरी धम्म खिलखिलाने लगे हमसब
मटकी की आवाज सुन मय्या बोली रुक लल्ला
सब सखा गए भाग लल्ला को पड़ी डाट
लल्ला को खुटे से बांध लल्ला मुस्कुराए मय्या खुद ही रोई रोई जाए
यशोदा का नंद लाला बड़ा नटखट बाला-