राधिका प्यारी प्रेम की मारी।
लगे नहीं मन कृष्ण बिन।।
सुध-बुध खोई बाँवरी होई।
साज़ अधूरे उन साँवरे बिन।।
ढाई आखर के प्रेम पठाये।
पर पढ़े न जाये बाँसुरी बिन।।-
जब रोम जल रहा था, तब नीरो बाँसुरी बजा रहा था
( यह मुहावरा उस व्यक्ति के लिए प्रयोग किया जाता है जो महत्वपूर्ण पद पर होते हुए भी आपातकालीन स्थिति में अपने लोगो को बचाने के लिए कोई कार्यवाही न करे )-
कान्हा...
काहे बैरन हुई तोर बाँसुरी,
बस आपी करै बतियाँ,
ओ कान्हा....
काहे बैरन हुई तोर बाँसुरी |
साँझ की छब साँवरी,
जब साँझ लिपटावै,
लज्जा करै बावरी,
ओ कान्हा.........
काहे बैरन हुई तोर बाँसुरी |
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जो हैं करीब उनको बराबरी मे रखूँ
फिसल गए तो उनको डायरी मे रखूँ,
न जगह न कोना कोई महफूज यहाँ
बेहतर है ये मै तुझको शाइरी मे रखूँ,
मुझसे पहले तुझको मिले तेरे जैसा
मै तेरे लिए खुद को आखिरी में रखूँ,
न हासिल है कृष्ण के जैसे महारत
तुझे पाने की धुन को बाँसुरी मे रखूँ,
शिकायतें है ज्यादा और कुछ नही
मेरी चले तो इश्क को बिमारी मे रखूँ।-
मेरे मन के मंदिर की आरती बन जाओ
मेरे दिल के सागर तुम मोती बन जाओ ।
मेरे भावों की अभिव्यक्ति तुम बन जाओ
मेरे दिल के अहसासों की प्रेरणा बन जाओ ।
मेरे दिल के रथ के तुम अब सारथी बन जाओ
मेरी बाँसुरी की बजती हुई प्यारी धुन बन जाओ ।
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गूँज भी तुम,
स्वर भी तुम,
मैं तो एक बेजान बाँसुरी
एक साँस दो तुम
तो गुनगुना उठूँ मैं...!!-
मोहब्बत के सबक कहाँ सीखे जातें है
इसमें तो राधा कृष्ण बहुत याद आते है ।
बाँसुरी बजाकर जब हम तुम्हें बुलाते है
मोहब्बत का हर रंग हम आपमें पातें है ।-
कृष्ण की वो प्रेम बाँसुरी, कानों से हृदयन तक लिपटे,
इक बिरज की होरी मनाई, भीतर तक होरी जा सिमटे।-
राधा मेरी बाँसुरी तेरी राह तके दिन-रैन
अधरो से छू ले इसे तो मिल जाए इसे चैन
नाम तेरा ही लेती है सुन ले करुण पुकार
स्वरों से सजा कर इसे कर दे तू उद्धार-