हर पल बहकी रही मैं, फ़िर भी उसकी प्यास न बुझा सकी..
वो शख़्श जो भी रहा आँखे पढ़ना जानता था !!-
हर रोज बहक जाते हैं मेरे कदम
तेरे पास आने के लिये
ना जाने कितने फासले तय करने अभी
बाकी है तुमको पाने के लिये-
साँस-दर-साँस चढ़ रही हो अब तुम, नशे की तरह
ग़र बहक जाऊँ मैं उतर न जाना तुम, नशे की तरह
- साकेत गर्ग 'सागा'-
सुन
तस्वीर तेरी देख कर आज तक बहक जाता हूॅं ,
मेरे हाथ में आज भी कभी रम या व्हिस्की नही आती.
ग़म ये नहीं है की तेरी यादें सता रही है आज तलक,
ग़म तो यह है की तुझे क्यों कभी मेरी याद नहीं आती..-
हमने भी आज महबूब का क़माल देखा है
आँखों में उसकी 'मोहब्बत का' सवाल देखा है
जो हमसे कभी नज़रे भी ना मिलाता था
ज़ेहन में उसके 'अपने लिये' ख़्याल देखा है
तन्हाइयों में रोते-रुलाते कट रहे थे सारे दिन
आज हमने 'सारी रात' मोहब्बत का बवाल देखा है
अब तक थी ज़िन्दगी स्याह काली सी
आज हमने 'रंग-ए-मोहब्बत' लाल देखा है
हर कोई बिक रहा है मोहब्बत के बज़ार में
हमने भी 'बज़ार' में यह दिल उछाल देखा है
सुना है मोहब्बत में बहक जाते हैं ख़्वाब सारे
हमने 'एक ख़्वाब' कईं ख़्वाबों को संभाल देखा है
मोहब्बत में हो जाती है जिस्म-ओ-रूह यार की 'सागा'
हमने भी इस बार 'ख़ुद में से' ख़ुद को निकाल देखा है
- साकेत गर्ग 'सागा'-
महफ़िल में तेरा ज़िक्र हुआ, मैं महक गया।
महफ़िल मैं तेरा दीदार हुआ, मैं चहक गया।
तुझसे यह दो नज़रें क्या मिली,
मैं तो खड़े-खड़े ही बहक गया।
- साकेत गर्ग-
बेशक उसके वादे अच्छे रहे होंगे
नादान था दिल आपका बहक गये होंगे-
हक नहीं उस महक पर
हक नहीं उस दहक पर
समझाऊँ कैसे दिल को जो
जाता उनपे बहक पर-